Sharmishtha Panoli Case: कोलकाता हाईकोर्ट ने सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर और लॉ स्टूडेंट शर्मिष्ठा पनोली की अंतरिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि कोई व्यक्ति धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा सकता है। शर्मिष्ठा के भी वीडियो को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ था। जिसमें उनके बयानों को एक विशेष समुदाय की धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाला माना गया। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में, जहां विभिन्न समुदाय, जाति और धर्म के लोग एक साथ रहते हैं, ऐसी टिप्पणियों में सावधानी बरतनी चाहिए।
मामले की पृष्ठभूमि
शर्मिष्ठा पनोली को 30 मई 2025 की देर रात गुरुग्राम से गिरफ्तार किया गया था और उन्हें कोलकाता लाया गया, जहां मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करने के बाद 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। उनके खिलाफ कोलकाता के गार्डनरीच थाने में भारतीय दंड संहिता की धारा 295A के तहत मामला दर्ज किया गया था। जो धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने से संबंधित है। शर्मिष्ठा ने विवादित वीडियो को बाद में हटा लिया था और सार्वजनिक रूप से माफी भी मांगी थी। लेकिन मामला बढ़ता गया। कोलकाता पुलिस ने कहा कि ऐसी टिप्पणियां जो सामाजिक अशांति या नफरत फैलाने की संभावना रखती हैं दंडनीय अपराध हैं।
कोर्ट की टिप्पणी और निर्देश
जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान कोलकाता हाईकोर्ट ने शर्मिष्ठा के वकील से कहा कि उनके वीडियो ने एक विशेष वर्ग की भावनाओं को आहत किया था। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर युक्तियुक्त प्रतिबंध हैं, विशेषकर जब बात राष्ट्रीय एकता, धार्मिक सौहार्द या सार्वजनिक व्यवस्था की बात हो। कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि अगली सुनवाई में केस डायरी प्रस्तुत की जाए। मामले की अगली सुनवाई 5 जून 2025 को होगी। कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित करने को कहा कि शर्मिष्ठा को हिरासत में सभी आवश्यक सुविधाएं प्रदान की जाएं।