वाराणसी। नाग पंचमी के दिन जब पूरे देश में नाग देवता की पूजा होती है, तब काशी की गलियों और घाटों में एक रहस्यमयी और अद्भुत परंपरा महुअर का खेल जीवंत होता है। यह खेल न सिर्फ रोमांचक है, बल्कि उत्तर भारत और बिहार की प्राचीन तांत्रिक परंपरा का प्रदर्शन भी है। महुअर कोई आम खेल नहीं, बल्कि अदृश्य तंत्र-मंत्रों की टक्कर है, जिसे केवल तांत्रिक साधना में पारंगत सपेरे ही खेलते हैं। यह खेल नांग पंचमी पर्व पर प्रह्लाद घाट, कोनिया, काल भैरव मंदिर चौराहा, राम घाट, लक्सा, और सनातन धर्म इंटर कॉलेज के पास खेला जाता है।
इस खेल के माहिर होते हैं दत्त संप्रदाय के सपेरे, जो नागों की साधना के लिए प्रसिद्ध हैं। इस संबंध में कानपुर देहात के ग्राम ढाकन सीवली गांव निवासी विनोद बाबा ने बताया कि दो या अधिक सपेरे जब आमने-सामने होते हैं तो वह मंत्रों के सहारे एक-दूसरे पर मनोवैज्ञानिक और तांत्रिक प्रभाव डालने की कोशिश करते हैं। दर्शकों को यह सब सामान्य सा दिखता है, लेकिन भीतर ही भीतर चलता है तांत्रिक शक्ति का मूक युद्ध।