(सुशील देव )
जब सरेआम मिलावट का बोलवाला हो तो भला कोई क्या करें? जब बाजार में मिलावटी चीजें ही उपलब्ध हों तो उपभोक्ता क्या करें? उपभोग करने की उनकी अपनी आदत या मजबूरियां हैं। अगर आप फूडी हैं, खान-पान आपकी कमजोरी है तो निश्चित रूप से आप अपनी सेहत ही खराब कर रहे हैं। मगर, यहां यह सोचना बेहद जरूरी है कि लगातार बीमार होते सेहत के लिए कौन असली जिम्मेदार हैं?निश्चित रूप से इसके लिए ऐसे फूड प्रोडक्ट निर्माता और बेचने वाले ज्यादा जिम्मेदार हैं। उन्हें पकड़ना बहुत जरूरी है। खामखा, कचोरी-समोसे या जलेबी को बदनाम करना उचित नहीं है। मान लिया कि यह सब चीज खाने में कोई हर्ज भी नहीं है लेकिन कब, कितना खाना है यह तो उपभोक्ताओं को ही तय करना पड़ेगा। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, उनके विभाग और स्वायत्तशासी निकायों का यह निर्देश कि उक्त चीजों को बेचने वाले यह बताएं कि उनमें किस प्रकार के और कितनी मात्रा में नमक, तेल, मसाले या चीनी इस्तेमाल की गई है। कितना उचित है? मंत्रालय ने सिगरेट और शराब के डब्बे पर छपी हुई वैधानिक चेतावनी की तर्ज पर हेल्थ वार्निंग के संदेश छापने का फरमान जारी किया है। यहां बड़ा सवाल यह है कि इससे उपभोक्ताओं को क्या फायदा होगा? क्या दुकान में टंगे बोर्ड या इन उत्पादों के डब्बों पर छपे संदेश को देखकर उपभोक्ता इन चीजों का उपभोग करना बंद कर देंगे, या फिर दुकानदार इसे लिखने के बाद ईमानदारी से काम करना शुरू कर देंगे? अच्छी बात यह है कि सरकार ने हेल्थ वार्निंग को लेकर जगह-जगह तेल और शुगर बोर्ड लगाने के संदेश जारी किए हैं। यदि इन व्यंजनों का उपभोग इस हिसाब से कम होने लगेगा तो इसे सराहनीय पहल ही कहा जाएगा। महत्वपूर्ण बात यह भी है कि ऐसे में उनका क्या होगा, जो मिलावटखोरी की बुनियाद पर अपना कारोबार चलाते हैं। आज पूरे देश में लाखों-करोड़ों ऐसी दुकानें हैं जो घटिया एवं नकली खाद्य पदार्थों को बेचकर मोटी कमाई कर रहे हैं। ऐसे में इन घातक व्यंजनों को अगर अधिकारिक रूप से सरकार के निशाने पर लिया गया है तो इससे अच्छा कदम और कुछ नहीं हो सकता। गौरतलब है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने रेस्टोरेंट और सार्वजनिक स्थानों पर तेल और चीनी बोर्ड लगाने पर सख्त रुख अख्तियार किया है। सरकार की दलील है कि इससे उन खाद्य पदार्थों में वसा और चीनी की मात्रा उजागर होगा। उपभोक्ता जागरूक होंगे और इन चीजों के इस्तेमाल में कमी आएगी। इसलिए तमाम रेस्टोरेंट, दुकानदार या स्ट्रीट वेंडरों को यह चेतावनी लटकाना आवश्यक कर दिया गया है। ऐसा नहीं है कि लोग इससे समोसा-कचोरी, ब्रेड पकोड़ा या जलेबी खाना छोड़ देंगे। लेकिन इससे उनमें जागरूकता जरूर आएगी। सभी जानते हैं कि अभी देश में जीवन शैली से जुड़ी बीमारियां बढ़ रही है। मोटापा, डायबिटीज, बीपी, हार्ट अटैक के खतरे बढ़ रहे हैं। अनुमान है कि 2050 तक देश में लगभग 45 करोड़ लोग मोटापे से ग्रस्त हो जाएंगे, जो एक भयावह स्थिति होगी। इसलिए इसके बचाव और उपाय जरूरी हैं। डॉक्टरों या स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा भोजन में तेल की खपत को कम करने की अपील की जा रही है। मसाले या अन्य खाद्य पदार्थों पर सतर्कता बरतने की सलाह दी जा रही है। शुद्ध एवं शाकाहारी व्यंजनों पर बल दिया जा रहा है। यह सच है कि अपनी सुविधाभोगी प्रवृत्ति के कारण आज हम अधिकांश बाजारों में मिलावटी तेल, मैदा कृत्रिम रंग और खतरनाक रसायनों से बनी चीजों का उपभोग करने में आगे हो गए हैं। हमारी थाली में मिलावटी और नकली खाद्य पदार्थों की भरमार हो गई है। ऐसे में केवल वैधानिक चेतावनी लिखकर टांगना काफी नहीं है। हालांकि सरकार ने उपभोक्ताओं में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से सभी आधिकारिक स्टेशनरी, लेटर हेड, लिफाफे, नोटपैड और फ़ोल्डरों पर भी ऐसे स्वास्थ्य संदेश छापने की अपील की है, जो सराहनीय है। स्वस्थ भारत अभियान में शुद्ध भोजन के लिए सचेत रहने और ईमानदारी बरतने की जरूरत है। अनेक हलवाइयों की दुकानों पर एक ही तेल का बार-बार प्रयोग किया जाना तथा खराब या गलत सामग्रियों के इस्तेमाल पर अंकुश लगाना बेहद जरूरी है। मोटी कमाई के चक्कर में स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने वालों को कड़े दंड का प्रावधान होना चाहिए। आज नकली दूध, पनीर, मिठाई, तेल, घी और मसाले समेत रोज़मर्रा में प्रयोग आने वाली कई चीज़ें हैं जिन पर कानूनी शिकंजा कसना बेहद जरूरी है। केवल चेतावनी से इनमें सुधार आने वाला नहीं है, जैसे च़ोर यदि चोरी करने में यह सोचें कि पुलिस उसे पकड़ लेगी तो वह चोरी ही नहीं करेगा। ठीक उसी प्रकार समोसा, ब्रेड, पकोड़ा, कचोरी या जलेबी की दुकान में जांच के बाद यदि मिलावट का पता चल जाए तो और उन्हें तुरंत आर्थिक दंड के साथ जेल भेजने का प्रावधान सुनिश्चित हो तो शायद इससे बाजार के साथ लोगों की सेहत भी सुधर जाएगी। इससे भी आगे बढ़कर सरकार को इन उत्पादों में प्रयोग किए जाने वाले पदार्थों पर भी अंकुश लगाना चाहिए। इस पाप में शामिल लोगों और संस्थाओं को भी पकड़ना जरूरी है। क्योंकि समोसा बनाने में प्रयुक्त तेल, मैदा या मसाले ही नकली हों तो भी वैधानिक चेतावनी की सतर्कता क्या रह जाती है?