New delhi :सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गवाह को धमकाना एक संज्ञेय अपराध है और पुलिस अदालत से औपचारिक शिकायत का इंतजार किए बिना सीधे एफआईआर दर्ज कर सकती है और ऐसी घटना की जांच कर सकती है। ऐसे मामलों में शिकायत के लिए पहले अदालत जाने के लिए कहना एक अव्यावहारिक बाधा है।
पीठ ने केरल हाईकोर्ट के उस फैसले को भी खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि आईपीसी की धारा 195-ए के तहत गवाह को धमकाने से संबंधित अपराध के लिए पुलिस की ओर से प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकती। इस दृष्टिकोण से असहमत होते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस धारा को जानबूझकर एक अलग अपराध के रूप में परिकल्पित किया गया है, जिसकी प्रक्रिया अलग है और एक संज्ञेय अपराध होने के कारण, पुलिस को धमकी दिए गए गवाह के बयानों के आधार पर सीधे प्राथमिकी दर्ज करने का अधिकार है। अदालत ने कहा कि धमकी दिए गए गवाह को शिकायत के लिए पहले अदालत जाने के लिए कहना एक अव्यावहारिक बाधा है।
अदालत जाने को कहना सिर्फ प्रक्रिया को कमजोर और बाधित करेगा
पीठ ने कहा, उस व्यक्ति को संबंधित अदालत में जाने और उसे उस धमकी के बारे में सूचित करने के लिए बाध्य करना, जिसके लिए धारा 195(1)(बी)(i) के तहत शिकायत दर्ज करने और सीआरपीसी की धारा 340 के तहत जांच की आवश्यकता होती है, इस प्रक्रिया को केवल कमजोर और बाधित करेगा। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि यह निर्विवाद तथ्य बना हुआ है कि धारा 195-ए के तहत अपराध एक संज्ञेय अपराध है। अदालत ने कहा कि एक बार ऐसा हो जाने पर सीआरपीसी की धारा 154 और 156 के तहत पुलिस की कार्रवाई करने की शक्ति पर संदेह नहीं किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने केरल, कर्नाटक हाईकोर्ट के दृष्टिकोण को कानूनन असंतुलित बताया
अदालत के फैसले में केरल और कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा लिए गए दृष्टिकोण को गलत और कानून की दृष्टि से असंतुलित घोषित किया गया। केरल द्वारा दायर मामले में हाईकोर्ट ने आरोपी को यह कहते हुए जमानत दे दी कि पुलिस को आईपीसी की धारा 195ए के तहत अपराध के लिए प्राथमिकी दर्ज करने का अधिकार नहीं है और केवल अदालत को ही उक्त अपराध के विरुद्ध शिकायत दर्ज करने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार की अपील को स्वीकार कर लिया।

