
देश की राजनीति में भारतीय जनता पार्टी का उभार और कांग्रेस सहित कई क्षेत्रीय दलों का पतन काफी कुछ कहता है। भले ही हार से बौखलाए मोदी और बीजेपी विरोधी नेता चुनाव में धांधली का आरोप लगा रहे हों ? सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग की बात करते हों ? लेकिन ऐसा नहीं है कि विरोधियों को अपनी राजनैतिक कमजोरी और सियासी अपरिपक्वता का अहसास नहीं है,लेकिन बार-बार पराजित हो रहे यह नेता सच्चाई स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं।जबकि सच्चाई यह है कि बीजेपी को छोड़कर देश की किसी भी राजनैतिक दल में लोकतांत्रिक व्यवस्था ही नहीं है। इसमें देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस सहित बहुजन समाज पार्टी,समाजवादी पार्टी,राष्ट्रीय जनता दल, बीजू जनता दल,उद्धव ठाकरे की शिवसेना,शरद पवार की एनसीपी, ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस जैसी पार्टियों की लम्बी चौड़ी लिस्ट हैं। अब इसमें नया नाम कट्टर ईमानरदार ‘आम आदमी पार्टी’ का भी जुड़ गया है। हालांकि आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली हार के लिये अभी तक ईवीएम मशीन या सरकारी मशीनरी पर किसी तरह की धांधली का आरोप नहीं लगाया है,जबकि उसी समय उत्तर प्रदेश में अयोध्या की चर्चित मिल्कीपुर विधान सभा सीट पर मिली जबर्दस्त हार के बाद समाजवादी पार्टी का प्रलाप लगातार जारी है। ऐसा ही प्रलाप कांग्रेस अध्यक्ष खरगे,नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, सहित उनकी पार्टी के तमाम नेता भी करते रहते हैं। हालात यह है कि हार से बौखला कर मोदी विरोधी नेता उन्हें(मोदी) और बीजेपी को ही नहीं चुनाव आयोग,सीबीआई,ईडी जैसी एजेंसियों के खिलाफ भी भड़ास निकालते रहते हैं। यह नेता मोदी को नीचा दिखाने के लिये देश की छवि भी खराब करने से नहीं चूकते हैं। इसमें विदेश से पढ़ाई करके आने वाले टेक्नोटेक सपा प्रमुख अखिलेश यादव और आईआरएस रह चुके अरविंद केजरीवाल जैसे पढ़े लिखे नेता शामिल हैं तो बिहार में लालू यादव के पुत्र तेजस्वी यादव भी आरोप-प्रत्यारोप वाली सियासत से ऊपर नहीं उठ पा रहे हैं।
दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने अपनी आभा को एकदम मटियामेट कर दिया है. जो केजरीवाल 12 साल पहले यूथ आइकॉन बनकर उभरे थे, वे अब धूल में लथपथ पड़े हैं. विधान सभा में ‘दिल्ली का मालिक मैं हॅंू‘ जैसे अहंकारी बयान देने वाले और हरियाणा सरकार पर यमुना नदी में जहर मिलाने का आरोप लगाकर अपनी फजीहत करा चुके अरविंद केजरीवाल दिल्ली जैसे आधे-अधूरे राज्य का मुख्यमंत्री रहने के बाद प्रधानमंत्री का ख्वाब देखने लगे थे मगर अब वे विधायकी भी गंवा बैठे. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है, कि अरविंद जिस तेजी से राजनीति में चमके थे उसी तत्परता से औंधे मुंह जा गिरे. अब उनका कोई भविष्य नहीं है और इसकी वजह है उनका बड़बोलापन और भरोसे की राजनीति न करना एवं उनकी अवसरवादिता.दिल्ली में अरविंद केजरीवाल से अधिक भद्द राहुल गांधी की पिटी है। पिछले कई चुनावों से दिल्ली में शून्य सीटों का रिकॉर्ड राहुल गांधी और कांग्रेस के नाम दर्ज है।