
बात इसी सितंबर की है। एक छोटे देश अल्बानिया ने एक एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस- यांत्रिक बुद्धिमत्ता) ‘डिएला’ को स्त्री रूप देकर अपनी केंद्रीय सरकार में कैबिनेट मंत्री बना दिया और दुनिया में मनुष्य बनाम तकनीक को लेकर एक बहस की शुरुआत कर दी। इस बहस के बीच ही जापान की एक 32 वर्षीय महिला ऐमी कैनो ने नवंबर में अपने प्रेमी से लंबे ब्रेकअप के बाद चेटजीपीटी ‘क्लॉस’ से विवाह कर बहस को नया आयाम दे दिया है।
कैनो ने ‘विवाह’ करने के लिए यह ‘एआई पर्सोना’ (कृत्रिम,आभासी व्यक्ति) चेटजीपीटी पर अपनी बातचीत को स्वानुकूल करके बनाया- उसकी आवाज, टोन, पर्सनेलिटी तय कर एक डिजिटल इमेज भी बनाई और उसे नाम दिया ‘क्लॉस’। इतना ही नहीं, उसने विवाह समारोह का आयोजन भी किया जिसमें कानौ ने ‘ऑगमेंटेड रियलिटी ग्लास’ पहने, जिनमें क्लॉस की लाइफ-साइज इमेज उसके बगल में खड़ी दिखाई दे रही थी। यह कार्यक्रम नाओ और सायाका ओगासावारा ने आयोजित किया, जो ‘2 डी कैरेक्टर वेडिंग्स’ करवाने में विशेषज्ञ हैं यानी वर्चुअल या ‘फिक्शनल पार्टनर’ से शादी करने वाले लोगों के लिए समारोह।
यह मामला तकनीक के अलावा सामाजिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टि से काफी दिलचस्प है जिसके कई चिंतनीय पहलू हैं। प्रश्न यह है कि क्या तकनीक अब पति-पत्नी जैसे नितांत निजी और अंतरंग मामले में भी मनुष्य का विकल्प बनने जा रही है? कैनो का ‘क्लॉस’ से प्रतीकात्मक विवाह पहला मामला नहीं है। मानव और ‘पुरुष’ या ‘स्त्री’ रूप बने एआई/रोबोट/होलोग्राम के बीच ऐसे ‘विवाह’ के अन्य मामले भी हैं जो कानूनी रूप से मान्य नहीं होते, लेकिन भावनात्मक रूप से व्यक्ति के लिए गहन होते हैं। 2017 में चीन के इंजीनियर झेंग जियाजिया ने खुद एक रोबोट ‘यिंगयिंग’ बनाया और उससे ‘विवाह’ कर लिया। 2018 में जापान के अकीहिको कोन्डो ने वर्चुअल पॉप स्टार हत्सुने मिकु (एक होलोग्राफिक एआई चरित्र) से तो 2023 में अमेरिकी रोसाना रैमोस ने रेप्लिका ऐप पर बनाए गए चैटबॉट ‘एरेन कार्टल’ से वर्चुअल मैरिज की। अमेरिका में ही 2025 में ट्रेविस नामक व्यक्ति ने चैटबॉट ‘लिली रोज’ से डिजिटल समारोह में विवाह किया। इसी तरह अलाईना विंटर्स ने भी एक रोबोट ‘लुकास’ से विवाह किया। इन विवाहों से सवाल भी उभरते है कि आखिर वह कौन-सी दुनिया है जिसमें इंसान मशीन के पास सुकून खोजने को मजबूर हो जाता है? वह कौन-सा जीवन है जहाँ लोग इतने अकेले हो चुके हैं कि एक डिजिटल साथी के सामने दिल खोलना आसान लगता है? ऐसे विवाह करने वाले सभी लोगों के तर्क में एक सामान्य बात थी कि वे इस भरी दुनिया में बेहद अकेलापन महसूस कर रहे थे और वर्चुअल रूप से उन्हें एक ‘परफेक्ट पार्टनर’ मिल गया है। दरअसल इन घटनाओं को सतह से नहीं, भीतर से देखने की ज़रूरत है। कभी मानव समाज का स्वरूप वृहद था, लोग एक ही छत के नीचे रहते थे, सब आत्मीय रिश्तों की डोर से बंधे थे।आगे चलकर विवाह का अर्थ बदल गया। रिश्तों का केंद्र ‘साथीपन’ बन गया, जिसमें अपनेपन की तलाश, भावनात्मक सहारा, दर्द और थकान को साझा करने की अपेक्षाएं थीं, लेकिन आधुनिक दुनिया इस साथीपन को धीरे-धीरे खोखला भी करती गई। समय की कमी, अस्थिर रोज़गार, असुरक्षा का भाव, संत्रास, कुंठा, अवसाद, महानगरों का अजनबीपन सब मिलकर ऐसा माहौल बना रहे हैं,जहाँ रिश्तों का बंधन निभाने का धैर्य कम होता जा रहा है। उनकी दिनचर्या में लोगों से संपर्क तो है, पर संबंध नहीं, आत्मीयता तो कत्तई नहीं। ऐसे माहौल में मन ऐसी उपस्थिति खोजने लगता है जो थकती न हो, शिकायत न करे, गायब न हो जाए। ये विवाह उस खालीपन की तरफ़ ही इशारा करते हैं जिसे भरने के लिए हर कोई अलग राह चुनता है। कोई दोस्ती में, कोई प्रेम में, कोई कला में, कोई आध्यात्मिकता में। इसी आधुनिक जीवन का एक पथ तकनीक से भी होकर गुज़र रहा है। ये घटनाएं सिर्फ ‘अनूठी खबर’ मात्र नहीं है, बल्कि समाज शास्त्र के एक बड़े बदलाव की ओर संकेत करती हैं- जहाँ मानव संबंधों की पारंपरिक धारणाएँ बदल रही हैं। करीब तीन साल पहले इज़रायल के प्रोफेसर समाजशास्त्री एलियाकिम किस्लेव ने किताब लिखी- ‘रिलेशनशिप 5.0: हाऊ एआई,वीआर एंड रोबोट्स विल रिशेप अवर इमोशनल लाइव्स’। यह किताब मानव संबंधों के इतिहास को तकनीकी विकास के चश्मे से देखती है। विकास का पहला चरण प्रागैतिहासिक काल से शुरू होता है। नवीनतम चरण 21वीं शताब्दी का है, जहां यांत्रिक बुद्धिमत्ता, वर्चुअल रियलिटी और रोबोट्स संबंधों का केंद्र बन रहे हैं। तकनीक अब सिर्फ उपकरण नहीं, बल्कि आधुनिक दौर में मशीनें ‘भावनात्मक साझेदार’ बन रही हैं। वे कहते हैं, “तकनीक अब हमारा नया जीवन साथी है।” ये ‘डिजिटल साथी’ भावना अकेल जीवन बिताने वालों के लिए एक वैकल्पिक सहारा बन रहे हैं। मशीनी साथी, खासकर चैटबोट, ऐसी प्रतिक्रियाएँ देते हैं जो सहानुभूति युक्त, स्थिर और प्रशंसात्मक हो सकती हैं। यह व्यवहार ‘एम्पैथिक रीफ्लेक्टिंग साथी’ जैसा हो सकता है- जो व्यक्ति को यह महसूस कराता है कि उसकी भावनाओं को समझा गया है और वे एआई के साथ गहरा आत्मीय रिश्ता महसूस करने लगते हैं। इतना सब होने के बावजूद यह बिंदु भी गौरतलब है कि ये रिश्ते पारंपरिक सामाजिक संरचनाओं को चुनौती देते हैं, इनके जोख़िम भी बहुत हैं। लम्बा भावनात्मक रिश्ता सामाजिक हानि में बदल सकता है। ये रिश्ते भविष्य में लैंगिक अनुपात को तो असंतुलित तो करेंगे ही,पारिवारिक संस्था के विघटन से सामाजिक अलगाव भी ज़्यादा नज़र आएंगे। यदि व्यक्ति भावनात्मक रूप से मशीनी, आभासी रिश्तों पर बहुत अधिक निर्भर हो जाएगा तो एआई के बंद होने, मॉडल बदलने, या सर्विस में बदलाव आने पर उसे झटका भी लग सकता है जो उसे गहरा मानसिक आघात ही पहुंचाएगा।
(स्वतंत्र पत्रकारिता-लेखन)

