(अजय मेहरा)
राजकोषीय अनुशासन और कानूनी जवाबदेही को सुनिश्चित करने के लिए दिल्ली सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया है। सार्वजनिक निर्माण विभाग (PWD), जल विभाग और सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग को पिछले 20 वर्षों में एक करोड़ रुपये से अधिक की राशि से संबंधित सभी मध्यस्थता (Arbitration) मामलों का विस्तृत लेखा-जोखा प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है।
इस व्यापक ऑडिट का उद्देश्य यह जानना है कि विभागों को कानूनी मामलों में कितना वित्तीय नुकसान हुआ और किस तरह से सार्वजनिक धन खर्च या व्यर्थ हुआ। इसके तहत विभागों से वर्षवार और निर्णयवार निम्नलिखित विवरण मांगा गया है:
1.एक करोड़ रुपये से अधिक की कुल मध्यस्थता मामलों की संख्या
2.वे मामले जिनमें निर्णय सरकार के विरुद्ध आया, साथ में संक्षिप्त विवरण
3.ऐसे मामलों में भुगतान की गई राशि या हुआ नुकसान
4.भुगतान से पहले कितने मामलों में अपील की गई
यह कार्रवाई ऐसे समय में की गई है जब सरकार को बार-बार कानूनी मामलों में हार का सामना करना पड़ रहा है, खासकर निर्माण और सिविल वर्क्स से जुड़े मामलों में, जिससे भारी-भरकम भुगतान ठेकेदारों को करना पड़ा।
सरकार ने यह भी स्पष्ट निर्देश जारी किया है कि जब तक सरकार के खिलाफ आए किसी मध्यस्थता निर्णय में सभी कानूनी उपाय पूरे नहीं हो जाते और विधि विभाग से औपचारिक मंज़ूरी प्राप्त नहीं हो जाती—तब तक कोई भुगतान नहीं किया जाएगा।
इस दिशा में एक बड़ा सुधार सार्वजनिक निर्माण विभाग (PWD) ने भी किया है: अब सभी नए ठेकों से मध्यस्थता क्लॉज़ (Arbitration Clause) को हटा दिया गया है। यदि किसी भी ठेकेदार को विवाद उठाना है, तो उसे अब सीधे न्यायालय का रुख करना होगा। इससे प्रक्रिया अधिक पारदर्शी होगी और ठेकेदारों द्वारा मनमाने दावे दाखिल करने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगेगा। यह निर्णय PWD मंत्री श्री प्रवेश साहिब सिंह के नेतृत्व में लिया गया है।
PWD मंत्री प्रवेश साहिब सिंह ने कहा:
“सरकारी धन जनधन है, और उसे सोच समझकर ही खर्च किया जाना चाहिए। वर्षों से विभाग बिना कानूनी लड़ाई लड़े मध्यस्थता से दावे निपटाते रहे हैं—अब यह नहीं चलेगा। हम बीते 20 वर्षों के हर मध्यस्थता मामले की जांच कर रहे हैं—यह जानने के लिए कि ज़िम्मेदार कौन था और किसने बिना लड़े हार मानी। सबसे महत्वपूर्ण बात—PWD के सभी नए ठेकों से मध्यस्थता क्लॉज़ हटा दिया गया है। अब जो भी विवाद होगा, वह अदालत में जाएगा। मध्यस्थता के ज़रिए अब कोई आसान पैसा नहीं मिलेगा।”
सरकार को उम्मीद है कि यह निर्णय न केवल फर्जी और आधारहीन दावों पर रोक लगाएगा, बल्कि सभी पक्षों—सरकारी विभागों और ठेकेदारों—को अधिक गंभीरता और कानूनी तैयारी के साथ परियोजनाओं को लेने के लिए बाध्य करेगा।
इस 20 वर्षीय समीक्षा और अनुशासनात्मक प्रक्रिया के ज़रिए दिल्ली सरकार ठेके व्यवस्था में संरचनात्मक सुधार लाने की दिशा में कदम बढ़ा रही है, जिससे भविष्य में वित्तीय नुकसान को रोका जा सके और शासन में जनता का विश्वास और मज़बूत हो।