तिरुवनंतपुरम। केरल सरकार द्वारा प्रधानमंत्री स्कूल्स फॉर राइजिंग इंडिया (पीएम श्री) स्कूल योजना लागू करने के फैसले ने राज्य की सियासत गरमा दी है। सरकार के इस फैसले के चलते वाम मोर्चे के भीतर ही बगावत जैसा माहौल बन गया है, केंद्रीय मंत्री सुरेश गोपी ने इसे ‘देर आए, दुरुस्त आए’ बताया। कुल मिलाकर शिक्षा सुधार की पहल के बीच अब राजनीति और नीतियों की जंग तेज हो गई है। ऐसे में केद्रीय राज्यमंत्री सुरेश गोपी ने कहा कि राज्य सरकार ने यह कदम बहुत देर से उठाया, लेकिन देर आए, दुरुस्त आए।
बता दें कि केरल सरकार ने हाल ही में इस योजना के लिए केंद्र के साथ समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं। इसके दो दिन बाद सुरेश गोपी ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि इस योजना के असली लाभार्थी बच्चे हैं, जिनका किसी राजनीतिक दल से कोई लेना-देना नहीं है। इसलिए उन्हें इस योजना के फायदे से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सीपीआई, सीपीएम, कांग्रेस और भाजपा सभी पार्टियों के अपने राजनीतिक अधिकार हैं, लेकिन इनकी राजनीति के कारण बच्चों की जरूरतें पूरी होने में बाधा नहीं आनी चाहिए।
इस दौरान गोपी ने राज्य के स्कूलों की हालत पर चिंता भी जताई। उन्होंने कहा कि कई स्कूलों की इमारतें 40–50 साल पुरानी हैं और खराब हालत में हैं। उन्होंने कहा कि क्या हमारे बच्चों को जर्जर इमारतों में पढ़ाई करनी चाहिए? इन स्कूलों को सुधारा जाना जरूरी है। यह योजना बच्चों के लिए फायदेमंद होगी।हालांकि दूसरी ओर केंद्रीय मंत्री के इस बयान से पहले केरल की सत्तारूढ़ वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) में शामिल सीपीआई ने सरकार के इस फैसले पर खुला विरोध जताया था। सीपीआई के राज्य सचिव बिनॉय विश्वम ने आरोप लगाया कि पार्टी और अन्य सहयोगियों को इस निर्णय की जानकारी नहीं दी गई, जिससे मोर्चे की सामूहिक अनुशासन का उल्लंघन हुआ है।
राज्य शिक्षा मंत्री ने किया फैसला का बचाव
वहीं, राज्य के शिक्षा मंत्री वी. शिवनकुट्टी ने सरकार के फैसले का बचाव करते हुए कहा कि यह एक रणनीतिक कदम है ताकि राज्य को केंद्र से फंड मिल सके, जबकि राज्य अपनी शिक्षा नीतियों को बरकरार रख सके। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि पीएम श्री योजना से जुड़ने का मतलब यह नहीं है कि केरल सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2022 को स्वीकार कर लिया है, जिसका वाम मोर्चा लंबे समय से विरोध करता रहा है।दूसरी ओर, विपक्षी कांग्रेस ने कहा कि यह फैसला एलडीएफ के भीतर गहरे मतभेदों को उजागर करता है।

