Mainpuri Dehuli Massacre: उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के दिहुली गांव में 1981में हुए भयावह जनसंहार मामले में मैनपुरी अदालत ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। इस नरसंहार के तीन दोषियों को फांसी की सजा दी गई है। 18 नवंबर 1981को 17हथियारबंद बदमाशों ने गांव में घुसकर 24दलितों की बेरहमी से हत्या कर दी थी।
बता दें कि, इस हत्याकांड के पीछे कुख्यात डकैत संतोष और राधे के गिरोह का हाथ था। गिरोह के सदस्य कुंवरपाल, जो दलित समुदाय से था, उसकी एक अगड़ी जाति की महिला से दोस्ती थी। गिरोह के लोगों को यह रिश्ता पसंद नहीं था। उन्होंने कुंवरपाल की हत्या कर दी। बाद में पुलिस ने गिरोह के दो सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया। गिरोह को शक हुआ कि दलितों ने पुलिस को सूचना दी थी। इसी दुश्मनी के कारण दिहुली गांव में यह भीषण नरसंहार हुआ।
चार घंटे तक चली गोलीबारी
डकैत पुलिस की वर्दी में आए और शाम 5बजे से अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। यह हमला चार घंटे तक चला। 23लोगों की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि एक घायल ने अस्पताल में दम तोड़ दिया। इस घटना से पूरा गांव दहशत में आ गया। कई दलित परिवार गांव छोड़ने पर मजबूर हो गए।
17आरोपी थे, 13की हो चुकी मौत, एक अब भी फरार
इस मामले में कुल 17आरोपी थे। इनमें से 13की पहले ही मौत हो चुकी है। 11मार्च 2025को मैनपुरी अदालत ने तीन को दोषी करार दिया और अब उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई है। एक आरोपी अब भी फरार है। उसे भगोड़ा घोषित कर दिया गया है।
क्या 44साल बाद मिला न्याय काफी है?
यह मामला 1984में इलाहाबाद सेशन कोर्ट में गया। फिर 2024में इसे मैनपुरी डकैती कोर्ट में स्थानांतरित किया गया। आखिरकार, 44साल बाद दोषियों को फांसी की सजा सुनाई गई।
पीड़ित परिवारों को इस फैसले से राहत मिली, लेकिन वे इसे “देर से मिला न्याय” मानते हैं। उनका कहना है कि अगर यह फैसला पहले आता, तो शायद अपराधियों को सबक मिलता और ऐसी घटनाएं न होतीं। अब सवाल उठता है कि क्या फरार आरोपी को भी जल्द गिरफ्तार कर इंसाफ पूरा होगा?