New Delhi सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर देश में खास तौर पर संसदीय, राज्य विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनावों से पहले मतदाता सूची में विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) की मांग की गई है। जस्टिस सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने मंगलवार को याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय से कहा कि मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने से पहले प्रक्रियागत खामियों को दूर करें। इस पर याचिकाकर्ता ने याचिका पर 10 जुलाई को सुनवाई करने की मांग की, जब अन्य याचिकाओं पर सुनवाई होगी। याचिका में भारत के चुनाव आयोग को एसआईआर करने का निर्देश देने की मांग की गई है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि केवल भारतीय नागरिक ही राजनीति और नीति तय करें, न कि अवैध विदेशी घुसपैठिए।
याचिका में कहा गया कि इसके लिए समय-समय पर मतदाता सूचियों की विशेष गहन जांच आवश्यक है। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए संवैधानिक जनादेश की वजह से मतदाता सूचियों की एसआईआर आवश्यक थी। बिहार में 243 विधानसभा क्षेत्र हैं। हर निर्वाचन क्षेत्र में मतदाता सूचियों में अनुमानित 8,000-10,000 अवैध, डुप्लिकेट और फर्जी प्रविष्टियां हैं। 2,000-3,000 वोटों की मामूली गड़बड़ी भी चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकती है।
बिहार में एसआईआर को लेकर मचा है बवाल
दरअसल, कांग्रेस, एनसीपी (शरद पवार), शिवसेना (यूबीटी), समाजवादी पार्टी, जेएमएम, सीपीआई और सीपीआई (एमएल) के विपक्षी दलों के नेताओं की ओर से बिहार में चुनाव से पहले एसआईआ कराने के चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में कई याचिकाएं दायर की गई हैं। राजद सांसद मनोज झा और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा की अलग-अलग याचिकाओं के अलावा कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल, शरद पवार एनसीपी गुट की सुप्रिया सुले, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के डी राजा, समाजवादी पार्टी के हरिंदर सिंह मलिक, शिवसेना (उद्धव गुट) के अरविंद सावंत, झारखंड मुक्ति मोर्चा के सरफराज अहमद और सीपीआई (एमएल) के दीपांकर भट्टाचार्य ने संयुक्त रूप से शीर्ष अदालत का रुख किया है। सभी नेताओं ने बिहार में मतदाता सूची की एसआईआर के निर्देश देने वाले चुनाव आयोग के आदेश को चुनौती दी है और इसे रद्द करने की मांग की है।