मुख्यमंत्री मान ने केंद्र से मांग की कि सिंधु जल संधि रद्द होने के बाद चिनाब और अन्य सहायक नदियों का अतिरिक्त पानी पंजाब को उपलब्ध कराया जाए। उनका दावा है कि यह पानी केवल पंजाब ही रोक सकता है। इसके लिए रोहतांग सुरंग के माध्यम से चिनाब का पानी ब्यास नदी की ओर मोड़ा जाए। उन्होंने कहा कि इस अतिरिक्त पानी के लिए पंजाब में नई नहरों और बुनियादी ढांचे की जरूरत होगी, जिससे पहले पंजाब की जरूरतें पूरी की जाएंगी।
इसके बाद ही बचा हुआ पानी हरियाणा और राजस्थान को दिया जा सकता है। इससे न केवल हरियाणा और राजस्थान, बल्कि दिल्ली की बढ़ती पेयजल आवश्यकताएं भी पूरी हो सकती हैं।पंजाब ने यमुना-सतलुज लिंक (वाईएसएल) नहर की वकालत करते हुए यमुना के 60 प्रतिशत पानी की मांग भी उठाई। मान ने कहा कि 12 मई 1994 के यमुना जल बंटवारे के समझौते की समीक्षा होनी चाहिए, जिसमें पंजाब को भागीदार राज्य के रूप में शामिल किया जाए।
हरियाणा को सलाह: अन्य स्रोतों पर ध्यान दें
मुख्यमंत्री मान ने हरियाणा को सुझाव दिया कि वह घग्गर, टांगरी, मारकंडा, सरस्वती नदियों और चौतांग नाले जैसे वैकल्पिक स्रोतों से उपलब्ध 2.703 मिलियन एकड़ फीट (एमएएफ) पानी का बेहतर उपयोग करे। उन्होंने कहा कि हरियाणा को इन स्रोतों के पानी के वितरण पर ध्यान देना चाहिए। साथ ही, उन्होंने चेतावनी दी कि एसवाईएल नहर का मुद्दा पंजाब में भावनात्मक और कानून-व्यवस्था की दृष्टि से संवेदनशील है, जिसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं और यह राष्ट्रीय समस्या बन सकता है।
विवाद की पृष्ठभूमि
एसवाईएल नहर विवाद 1981 के जल बंटवारा समझौते से शुरू हुआ, जिसके तहत भाखड़ा बांध का पानी 214 किलोमीटर लंबी नहर के जरिए हरियाणा को दिया जाना था। इस नहर का 122 किलोमीटर हिस्सा पंजाब और 92 किलोमीटर हरियाणा में बनना था। हरियाणा ने अपना हिस्सा पूरा कर लिया, लेकिन पंजाब ने पानी की कमी का हवाला देकर निर्माण रोक दिया। यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहां 2004 में पंजाब के समझौता रद्द करने के कानून को असंवैधानिक करार दिया गया। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब को नहर निर्माण पूरा करने का आदेश दिया, लेकिन पंजाब ने पानी की उपलब्धता की नए सिरे से जांच की मांग की है।