जयपुर। राजस्थान में मौसम के साथ सियासत में भी तपिश बढ़ती दिख रही है। एक तरफ विधायक कंवरलाल मीणा की सदस्यता का मुद्दे पर कांग्रेस तनातनी के मूड में है, तो दूसरी तरफ विधानसभा कमेटी से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के इस्तीफे ने माहौल और ज्यादा गरमा दिया है। डोटासरा और स्पीकर के बीच टकराव के इस नए फ्रंट पर सियासत की नजरें गड़ी हैं। पेश है इस बातचीत के अंश-
-नहीं, कांग्रेस की स्पीकर से कोई अदावत नहीं है। कांग्रेस ने तो देवनानीजी को निर्विरोध स्पीकर चुना था। हो ही नहीं सकती… हमेशा जो परंपरा रही है उसके अनुसार स्पीकर सम्मानीय होता है। वह सरकार का भी काम करवाता है और विपक्ष का भी पूरा ख्याल उन्हीं को रखना होता है तो अदावत का तो कोई सवाल ही नहीं। संवैधानिक जो व्यवस्थाएं हैं, जो नियम हैं, जो प्रक्रियाएं हैं, उनकी जब अवहेलना होती है, तो विपक्ष का धर्म बनता है कि वो अपनी आवाज उठाए और अपनी बात रखे।
– देखिए, जो पक्षपातपूर्ण रवैया स्पीकर अपना रहे हैं… जिस प्रकार से कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता नरेंद्र बुढ़ानिया को एक कमेटी का चेयरमैन बनाया, उन्होंने खुद ने बुढ़ानिया का नाम दिया कि मैं चाहता हूं कि वरिष्ठ व्यक्ति नरेंद्र बुढ़ानिया जी विशेष अधिकार समिति के अध्यक्ष बनें। तो हमारे CLP ने सहर्ष स्वीकार कर लिया कि ठीक है, आप विपक्ष को कमेटी दे रहे हो और वरिष्ठ आदमी का नाम आपने लिया, तो हमें इसमें ऐतराज नहीं है लेकिन उसके बावजूद, जब वे अपना काम करने लगे, मीटिंग कर ली और फिर किसी ने विशेषाधिकार हनन का मामला उठाया और कमेटी ने सर्वसम्मति से उसके ऊपर रिपोर्ट मांगी, तो उन्होंने (स्पीकर ने) बुढ़ानिया को ही हटा दिया। यह तो गलत है। उनको असीमित अधिकार नहीं हैं, उन्हें कमेटी गठन का अधिकार है। वह भी उन्हें हाऊस ने दिया था।
जब कमेटी का गठन हो गया है और सदस्य नियुक्त हो चुके हैं, तो अध्यक्ष उन्हीं में से चुना जाता है। नरेंद्र बुढ़ानिया को वर्तमान में बदलकर जिस समिति का अध्यक्ष बनाया गया था, वे उसके सदस्य ही नहीं हैं। एक साल के लिए समिति का कार्यकाल होता है, स्पीकर हर रोज अपनी मर्जी से उसमें बदलाव नहीं कर सकते।
ब्यूरोक्रेसी में टकराव हो रहा है? आईएएस-आरएएस आमने-सामने हो रहे हैं। आप इसे किस तरह से देखते हैं?
– सबकुछ ब्यूरोक्रेसी ही तो कर रही है। जो कुछ भी ‘खेला’ हो रहा है राजस्थान में, वो ब्यूरोक्रेसी ही कर रही है, बाकी नेता तो हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। इन्हें तो कोई खुरचन मिल रही होगी, बाकी तो सब कुछ अफसर कर रहे हैं। और क्यूं नहीं लड़ें ये, आपस में जब यहां अलग-अलग गुट बन गए, अफसरों ने अलग-अलग दिल्ली के आकाओं को पकड़ लिया गया, तो निश्चित रूप से टकराव होगा।
1 जनवरी को आईएएस, आईपीएस प्रमोशन हो गए। इसके बाद भी नीचे के पदों पर अफसर आज तक जमे हुए हैं। ऐसे सात जिले तो मेरी जानकारी में हैं, जहां प्रमोशन के बाद एडीजी बन चुके अफसर अब भी एसपी लगे हुए हैं।
मुख्यमंत्री हर विभाग की समीक्षा बैठक कर रहे हैं, लेकिन मंत्री नहीं हैं। वीडियो कांफ्रेंस के जरिए उद्घाटन हो रहे हैं और विभाग के मंत्री को जानकारी तक नहीं। बजट घोषणाओं की क्रियान्विति की बैठक ले रहे हैं और उसमें बजट पढ़ने वाली उपमुख्यमंत्री ही नहीं हैं। मुख्यमंत्री का काम दिल्ली से आई पर्ची पढ़ना नहीं होता, उनका खुद का विजन होना चाहिए।
शशि थरूर को लेकर भी कांग्रेस में काफी विरोध हो रहा है, आपका इस मुद्दे पर क्या कहना है?
– मोदी सरकार अंग्रेजों की नीति फूट डालो और राज करो अपना रही है। सरकार ने जब नाम मांगे तो जो नाम नेता प्रतिपक्ष ने दिए उन्हीं में से मोदी सरकार को चुनना चाहिए था, उसके अलावा उन्हें अपनी राजनीति नहीं करनी चाहिए थी।
दो साल की सरकार लेकिन अभी तक बोर्ड्स और अपॉइंटमेंट्स नहीं हुए हैं।
-आप पॉलिटिकल अपॉइंटमेंट की बात तो छोड़िए, जो नारा देकर ये सत्ता में आए थे कि आरपीएससी भंग, पेपर लीक उसका क्या हुआ। माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष का पद खाली, आरपीएससी के अध्यक्ष का पद खाली, आरपीएससी के सदस्यों के पद खाली… फिर कौन सा मॉडल लाना चाहते हैं। इन्होंने सिर्फ सत्ता में आने के लिए झूठ बोला। आज 2 साल हो गए क्या उन्हें आरपीएससी चेयरमैन नहीं बनाना चाहिए था। आरपीएससी भंग करनी थी या स्वरूप चेंज करना था, जो भी करना था उन्होंने किया क्या। कोई नियम, प्रक्रिया, कानून… कुछ तो कर सकते थे।