New Delhi: भारत ने पाकिस्तान की नींद उड़ा देने वाली एक बड़ी रणनीति पर काम तेज कर दिया है। वर्षों से विवादों में उलझी तुलबुल नेविगेशन परियोजना (Wullar Barrage) को दोबारा शुरू करने की तैयारी जोरों पर है। सूत्रों के मुताबिक, इसके लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) तैयार की जा रही है, जो लगभग एक साल में पूरी हो जाएगी। इसके बाद परियोजना को जमीन पर उतारने का फैसला होगा।
तुलबुल परियोजना जम्मू-कश्मीर में वुलर झील के मुहाने पर बनने वाला एक नियंत्रण ढांचा (नैविगेशन लॉक-कम-कंट्रोल स्ट्रक्चर) है। इसका मकसद सर्दियों में झेलम नदी में जल स्तर बनाए रखना और नौवहन को सुगम बनाना है। हालांकि 1987 में पाकिस्तान के विरोध के चलते यह प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में चला गया था।
कश्मीर को होगा सीधा फायदा
विशेषज्ञों का मानना है कि इस परियोजना के पूरा होने से जम्मू-कश्मीर के लोगों को सामाजिक-आर्थिक फायदा मिलेगा। इससे झेलम नदी में जल प्रवाह सुधरेगा, बाढ़ प्रबंधन बेहतर होगा और जलभराव की समस्या भी कम होगी। साथ ही, झेलम में सालभर नौकायन संभव हो सकेगा जिससे व्यापार और आवाजाही आसान होगी।
भारत की दलील- संधि के दायरे में आता है प्रोजेक्ट
भारत का हमेशा से यह कहना रहा है कि तुलबुल परियोजना सिंधु जल संधि के नियमों के भीतर आती है। संधि में भारत को नॉन-कंजम्पटिव उपयोग जैसे नौवहन के लिए पानी का इस्तेमाल करने की अनुमति है, बशर्ते इससे पाकिस्तान के डाउनस्ट्रीम उपयोग पर असर न पड़े।
पाकिस्तान को भारत का सख्त संदेश
पाकिस्तान का आरोप रहा है कि यह परियोजना असल में एक बैराज है, जिसकी भंडारण क्षमता 0.369 अरब घन मीटर है, जो संधि का उल्लंघन है। हालांकि भारत ने बार-बार स्पष्ट किया है कि यह परियोजना जल भंडारण के बजाय जल प्रवाह नियंत्रित करने और नौवहन सुविधा के लिए है।
पंजाब-हरियाणा को भी मिल सकता है फायदा
सूत्रों ने यह भी बताया कि तकनीकी तौर पर एक पश्चिमी नदी से पानी को पंजाब और हरियाणा की ओर मोड़ने की संभावना पर भी विचार चल रहा है। हालांकि फिलहाल सिंधु नदी को मोड़ने पर कोई चर्चा नहीं है। पाकिस्तान की आपत्तियों के बावजूद भारत ने किशनगंगा हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट पूरा कर लिया है और रतले परियोजना पर भी तेजी से काम हो रहा है। इन सभी कदमों से पाकिस्तान पर दबाव बढ़ना तय है।