“विधानसभाओं में एआई का उपयोग समय की आवश्यकता है। यह हमारी कार्यप्रणाली को तेज़, आसान और अधिक वैज्ञानिक बनाने के साथ-साथ लोकतंत्र को भी सशक्त बना सकता है यह बात दिल्ली विधान सभा के अध्यक्ष श्री विजेंद्र गुप्ता ने आज “विधानसभाओं में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के प्रयोग” विषय पर आयोजित एक संगोष्ठी में कही।श्री गुप्ता ने आगे कहा लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि कोई भी तकनीक पूर्णतः दोषरहित नहीं होती। इससे जुड़ी चिंताओं और सीमाओं पर गंभीर चर्चा आवश्यक है।”
श्री गुप्ता ने कहा कि एआई की मदद से विधायकों को बड़ी मात्रा में रिपोर्टों का विश्लेषण, सार-संक्षेप तैयार करने और पुराने आंकड़ों की तुलना जैसी कार्यों में सुविधा मिल सकती है, जिससे वे सत्रों की तैयारी और विषयों की समझ में और अधिक प्रभावी हो सकते हैं। साथ ही, एआई आधारित पोर्टल्स और चैटबॉट्स आम नागरिकों को उनके जनप्रतिनिधियों की सक्रियता की जानकारी देकर पारदर्शिता और जवाबदेही को भी मज़बूत कर सकते हैं।
माननीय अध्यक्ष ने यह भी स्पष्ट किया कि “कोई भी तकनीक पूरी तरह दोषरहित नहीं होती” और “डेटा सुरक्षा”, “पूर्वाग्रह व पक्षपात” और “भाषायी व तकनीकी पहुंच” जैसी प्रमुख चुनौतियों पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है।
श्री गुप्ता ने विस्तार से बताया कि एआई वही सीखता है जो डाटा उसे सिखाता है — यदि डाटा अधूरा या किसी एक दृष्टिकोण से प्रेरित हो, तो एआई भी उसी तरह की पक्षपातपूर्ण जानकारी या सुझाव देगा। इससे नीतियां एकतरफा बन सकती हैं, जो समाज के कमजोर वर्गों के हितों को नुकसान पहुंचा सकती हैं। उन्होंने चेताया कि यदि एआई के एलगोरिदम(एलगोरिदम किसी समस्या को हल करने या कोई कार्य करने के लिए प्रक्रियाओं की एक स्पष्ट सूची होती है।)निष्पक्ष नहीं हुए तो शक्तिशाली वर्ग इसका दुरुपयोग अपने हितों को बढ़ावा देने या विपक्षी विचारों को दबाने में कर सकते हैं, जिससे लोकतंत्र का संतुलन बिगड़ सकता है।
श्री गुप्ता ने यह भी रेखांकित किया कि भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में यह ध्यान रखना आवश्यक है कि सभी जनप्रतिनिधि तकनीकी रूप से सशक्त नहीं है, विशेष रूप से वे विधायक जो ग्रामीण पृष्ठभूमि से आते हैं। ऐसे में “उचित प्रशिक्षण की व्यवस्था” अनिवार्य है ताकि कोई भी इस तकनीकी बदलाव से वंचित न रहे।
श्री गुप्ता यह भी कहा कि एआई के आगमन से विधायी सचिवालयों, अनुसंधान विभागों और डाटा विश्लेषण से जुड़ी नौकरियों पर असर पड़ सकता है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि “जो अनुभवी जनशक्ति वर्षों से लोकतंत्र की रक्षा कर रही है, उन्हें दरकिनार नहीं किया जाना चाहिए” और एआई को मनुष्य की नौकरियों का विकल्प नहीं बनना चाहिए।
माननीय अध्यक्ष ने उत्तरदायित्व का एक महत्वपूर्ण प्रश्न भी उठाया —
“यदि एआई द्वारा दी गई जानकारी या सुझाव गलत साबित हो जाएं तो इसकी जिम्मेदारी किसकी होगी — मशीन की, सरकार की या तकनीकी कंपनी की?” उन्होंने इस संदर्भ में स्पष्ट नीति और मजबूत उत्तरदायित्व तंत्र की आवश्यकता बताई।
उन्होंने याद दिलाया कि एआई “मानव जैसी भावनाओं को नहीं समझता” और विधानसभाओं में कई विषय ऐसे होते हैं जिनमें भावनात्मक समझ की आवश्यकता होती है — जैसे आरक्षण, धर्मनिरपेक्षता, महिला सुरक्षा, भेदभाव और हिंसा आदि — जहां एआई की भूमिका स्वाभाविक रूप से सीमित है।
अंत में श्री गुप्ता ने यह भी चेताया कि वर्तमान में अधिकांश एआई तकनीकें विदेशी कंपनियों के स्वामित्व में हैं, और उनका सीधा उपयोग हमारी संवैधानिक संस्थाओं की “स्वायत्तता और गोपनीयता” को प्रभावित कर सकता है।
सम्मेलन के समापन पर माननीय अध्यक्ष ने कहा —“हमें एआई का विरोध नहीं करना है, बल्कि इसके लाभों को अपनाते हुए मजबूत नीति, कड़ी निगरानी और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने की दिशा में कार्य करना है। एआई एक उपकरण है — शक्तिशाली जरूर है, परंतु मानव का विकल्प नहीं है। यह तभी उपयोगी है जब इसे मानवीय विवेक, संवेदनशीलता और लोकतंत्र तथा संविधान के सम्मान के साथ प्रयोग में लाया जाए।”