Shashi Tharoor: एक मलयालम अखबार में प्रकाशित लेख में कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने 25 जून 1975 और 21 मार्च 1977 के बीच प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा घोषित आपातकाल के काले युग को याद किया। उन्होंने कहा कि अनुशासन और व्यवस्था के लिए किए गए प्रयास क्रूरता में बदल दिए गए। जिन्हें उचित नहीं ठहराया जा सकता।
उन्होंने कहा कि लोकतंत्र को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। यह एक बहुमूल्य विरासत है जिसे निरंतर पोषित और संरक्षित किया जाना चाहिए। इसे दुनिया भर के लोगों के लिए एक स्थायी अनुस्मारक के रूप में काम करने दें। आज का भारत 1975 का भारत नहीं है। उन्होंने कहा कि हम अधिक आत्मविश्वासी, अधिक विकसित और कई मायनों में अधिक मजबूत लोकतंत्र हैं। फिर भी आपातकाल के सबक अभी भी चिंताजनक रूप से प्रासंगिक हैं।थरूर ने कहा कि सत्ता को केंद्रीकृत करने, असहमति को दबाने और सांविधानिक सुरक्षा उपायों को दरकिनार करने का प्रलोभन विभिन्न रूपों में फिर से प्रकट हो सकता है। अक्सर ऐसी प्रवृत्तियों को राष्ट्रीय हित या स्थिरता के नाम पर उचित ठहराया जा सकता है। इस लिहाज से आपातकाल एक कड़ी चेतावनी है। लोकतंत्र के रक्षकों को हमेशा सतर्क रहने की जरूरत है।