विवेक शुक्ला
(वरिष्ठ लेखक और स्तंभकार)
अभी कुछ समय पहले मुंबई से पटना की फ्लाइट में साथ की सीट में एक नौजवान लैपटॉप पर काम कर रहा था। फिर हमारी बातचीत होने लगी। उसने बताया कि वो शेयर मार्केट एक्सपर्ट है और पटना से अपना दफ्तर चलाता है। उसके स्टाफ में आठ लोग हैं। उसका काम के सिलसिले में मुंबई आना-जाना लगा रहता है। उसने यह भी कहा कि एक दौर में वो और उसके बहुत सारे दोस्त सरकारी नौकरी करना चाहते थे। पर फिर लगा कि अब कुछ अपना करना चाहिए। कारण था सरकारी नौकरियां घट रही हैं और उन्हें पाना भी आसान नहीं है। दरअसल ये बिहार में बड़े स्तर पर हो रहा है। बिहारी नौजवान अब अपना कारोबार शुरू करने के बारे में सोचने लगे और उस दिशा में बढ़ रहे हैं। वे कारोबारी दुनिया में बेहतर कमा रहे हैं। यह भी याद रखा जाए कि बिहार में निजी क्षेत्र का निवेश भी होने लगा है। पिछले साल दिसंबर में बिहार की राजधानी पटना में आयोजित इनवेस्ट समिट के दौरान अडानी समूह, सन पेट्रोकेमिकल्स और कई अन्य बड़ी-छोटी कंपनियों ने राज्य में 1.81 लाख करोड़ रुपये का निवेश करने का वादा किया। यह निवेश नवीकरणीय ऊर्जा, सीमेंट, खाद्य प्रसंस्करण और विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में होगा। इससे पहले 2023 में आयोजित पहले निवेशक सम्मेलन में बिहार में 50,300 करोड़ रुपये के निवेश का वादा मिला था। सन पेट्रोकेमिकल्स 36,700 करोड़ रुपये ऊर्जा परियोजनाओं, जैसे पंप हाइड्रो और सौर संयंत्रों में निवेश करेगी। अडानी समूह, जो राज्य में सबसे बड़ा निजी निवेशक है, ने लगभग 28,000 करोड़ रुपये निवेश करने का वादा किया है। यह निवेश एक अत्याधुनिक थर्मल पावर प्लांट स्थापित करने, सीमेंट उत्पादन क्षमता बढ़ाने, खाद्य प्रसंस्करण और लॉजिस्टिक्स व्यवसायों के विस्तार में किया जाएगा। यकीन मानिए, बिहार अब आर्थिक पुनर्जागरण की मिसाल बनता जा रहा है। हाल ही में पटना में आयोजित एक विशेष औद्योगिक संवाद में देश की 55 आईटी और इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों ने हिस्सा लिया। ये कंपनियां राज्य में निवेश की संभावनाएं टटोल रही थीं। ड्रोन, डेटा सेंटर, सोलर उपकरण, लैपटॉप निर्माण और सॉफ्टवेयर सेवाओं से जुड़ी कंपनियों ने जिस उत्साह से बिहार की नई नीतियों की सराहना की, वह बताता है कि राज्य अब ‘लालटेन’ से ‘लैपटॉप’ की ओर तेजी से बढ़ रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में राज्य सरकार द्वारा निवेशकों के लिए 70 प्रतिशत तक प्रोत्साहन राशि देने की नीति, सिंगल विंडो क्लीयरेंस की व्यवस्था और निवेशकों के साथ संवाद की तत्परता ने उद्योग जगत को आकर्षित किया है। इस बार बदलाव केवल कागजों तक सीमित नहीं है, बल्कि ज़मीन पर भी दिखने लगा है। बिहार में आर्थिक चेतना का एक नया अध्याय निवेशकों की भागीदारी से भी खुल रहा है। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के आंकड़े बताते हैं कि बीते पांच वर्षों में बिहार में शेयर बाजार में निवेश करने वाले लोगों की संख्या 0.7 लाख से बढ़कर 52 लाख हो गई है। यह 68 गुना की वृद्धि न केवल देश में सबसे अधिक है, बल्कि यह दर्शाता है कि अब राज्य की जनता आर्थिक निर्णयों को लेकर अधिक जागरूक और आत्मनिर्भर होती जा रही है। यही नहीं, म्यूचुअल फंड में बिहार के निवेशक 89 प्रतिशत हिस्सा इक्विटी योजनाओं में लगा रहे हैं, जो यह संकेत देता है कि उन्हें बाजार की चाल और लाभ-हानि की समझ अब बेहतर हो चुकी है। बिहार के उद्योग जगत पर नजर रखने वाले जानते हैं कि यहां से ही अनिल अग्रवाल ( वेदांता समूह), आर.के. सिन्हा ( एसआईएस सिक्योरिटी), संप्रदा सिंह एल्केम लैबोरेटरीज, आनंद कुमार ( सुपर 30) जैसे बड़े कारोबारी निकले। इस सूची में कुछ नाम और भी शामिल किए जा सकते हैं और आने वाले समय में यह सूची बहुत लंबी होगी क्योंकि अब बिहारी नौजवान बदलने लगा है। उसे सरकार का साथ भी मिल रहा है। विश्व विख्यात आई सर्जन और दिल्ली एम्स के राजेन्द्र प्रसाद आई सेंटर के पूर्व डायरेक्टर डॉ. राजवर्धन आजाद कहते हैं कि दरअसल मीडिया में कुछ लोग बिहार को लेकर नकारात्मक खबरें पेश करना अपना धर्म समझते हैं। इससे राज्य की सही तस्वीर सामने ही नहीं आ पाती। इस मानसिकता को बदलने की जरूरत है। बिहार में शिक्षा और सेहत के क्षेत्र में लगातार बेहतर काम हो रहा है। अब उद्योग जगत को भी प्रोत्साहन मिल रहा है। देखिए इस बदलाव के कई आयाम हैं। एक तो यह कि अब सरकारी नौकरी को ही एकमात्र विकल्प मानने की मानसिकता में कमी आई है। दूसरा, यह कि डिजिटलीकरण और मोबाइल एप आधारित वित्तीय सेवाओं ने ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंच बना ली है। जेरौडा, ग्रो और अपस्टाक्स जैसे प्लेटफॉर्म्स ने न केवल जानकारी को सहज बनाया है, बल्कि निवेश को भी सरल बना दिया है। आज समस्तीपुर का एक छोटा कारोबारी और दरभंगा की एक गृहिणी म्यूचुअल फंड में निवेश कर रही है। यह बदलाव छोटे दिख सकते हैं, लेकिन जब इन्हें करोड़ों लोगों की आदत में शुमार कर लिया जाए, तो इसका प्रभाव देश की पूरी आर्थिक संरचना पर पड़ता है। बिहार के इस बदलाव का संबंध शिक्षा और सूचना तक पहुंच से भी है। बीते एक दशक में राज्य में उच्च शिक्षा संस्थानों की संख्या में वृद्धि हुई है। स्मार्टफोन और इंटरनेट ने ग्रामीण युवाओं को वैश्विक दुनिया से जोड़ा है। सोशल मीडिया और यूट्यूब जैसे माध्यमों ने जानकारी को लोकतांत्रिक बना दिया है। अब वित्तीय निर्णय केवल विशेषज्ञों का क्षेत्र नहीं रहा। आम जनता भी शेयर बाजार, म्यूचुअल फंड, बीमा और टैक्स प्लानिंग जैसी चीजों में रुचि ले रही है। यह समझना भी जरूरी है कि भारत की आर्थिक उन्नति केवल जीडीपी के आंकड़ों या बाजार सूचकांकों से नहीं मापी जा सकती। यह बदलाव तब स्थायी और प्रभावी होगा, जब देश के सभी हिस्से इस विकास में समान भागीदार बनें। बिहार जैसे राज्य, जिनकी दशकों तक विकास दर कम रही, यदि तेजी से ऊपर उठते हैं तो यह भारत के लिए सामाजिक संतुलन और क्षेत्रीय न्याय का संकेत भी होगा। यह जरूरी है कि नीति निर्धारण में बिहार जैसे राज्यों को केवल लाभार्थी के रूप में नहीं, बल्कि साझेदार के रूप में देखा जाए। उनकी समस्याएं, संरचनात्मक बाधाएं, कौशल विकास की जरूरतें, और औद्योगिकआधारभूत ढांचे की कमी को दूर करने के लिए केंद्र और राज्य मिलकर काम करें