Shibu Soren Death: झारखंड के आदिवासियों के महानायक और झारखंड आंदोलन के प्रणेता शिबू सोरेन के निधन से न सिर्फ झारखंड बल्कि पूरा देश शोक में डूबा हुआ है। रामगढ़ जिले के नेमरा गांव, जो कि गुरुजी का पैतृक गांव है, वहां मातम पसरा हुआ है। गांव के लोगों को उम्मीद थी कि गुरुजी स्वस्थ होकर एक बार फिर अपने गांव लौटेंगे, लेकिन सोमवार को जो खबर आई, उसने सभी को गमगीन कर दिया। अब नेमरा के लोग अपने प्रिय नेता के पार्थिव शरीर के अंतिम दर्शन की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
नेमरा गांव के अधिकतर लोग खेती-बाड़ी करते हैं। गांव में शिबू सोरेन के छोटे भाई, स्वर्गीय शंकर सोरेन की पत्नी दीपमणी सोरेन और उनकी बेटी रेखा सोरेन ने बताया कि गुरुजी बेहद साधारण जीवन जीते थे और अक्सर पैदल चलकर गांव और आसपास के इलाकों में जाया करते थे। आंदोलन के दिनों में भी वे इसी गांव के पहाड़ी रास्तों से निकलकर झारखंड के विभिन्न हिस्सों में जाते थे।
रेखा सोरेन बताती हैं कि बाबा पिछली बार सोहराय पर्व पर घर आए थे। जब से होश संभाली हूं, तब से देखती आ रही हूं कि बाबा हर साल सोहराय पर्व में जरूर घर आते थे। नेमरा गांव का हर व्यक्ति आज दुखी है, क्योंकि बाबा पहले बराबर आते थे। बीमार होने के बाद से आना कम हो गया, लेकिन उनकी यादें गांव के कोने-कोने में बसी हैं। उन्होंने आगे कहा कि बाबा कभी खुद को वीआईपी नहीं समझते थे। वो हमेशा ग्रामीणों के बीच बैठते, उनसे बातें करते। गांव के बच्चे, बूढ़े, महिलाएं सभी उन्हें परिवार के सदस्य की तरह मानते थे।
नेमरा गांव आज भी उनकी सादगी और संघर्ष को याद कर रहा है। लोगों के चेहरे पर आंसू हैं, लेकिन साथ ही गर्व भी है कि उन्होंने एक ऐसे नेता को अपने बीच पाला-पोसा, जो न सिर्फ झारखंड बल्कि देश की राजनीति में एक मजबूत पहचान बनाकर गया।