नेतन्याहू का रुख और आलोचना
प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने एक उच्चस्तरीय सुरक्षा बैठक बुलाई जिसमें युद्ध के अगले चरण पर चर्चा हुई। उन्होंने संकेत दिया कि सैन्य कार्रवाई और तेज हो सकती है। लेकिन इस कदम का विरोध देश के पूर्व प्रधानमंत्री एहुद बराक, शिन बेट (आंतरिक सुरक्षा एजेंसी), मोसाद (जासूसी एजेंसी) और सेना के पूर्व प्रमुखों ने किया है। पूर्व शिन बेट प्रमुख योराम कोहेन ने कहा, ‘हर आतंकवादी को मारना, हर हथियार को ढूंढ निकालना और साथ ही सभी बंधकों को सुरक्षित वापस लाना – ये सब एक कल्पना है। ऐसा संभव नहीं है।’ उन्होंने चेतावनी दी कि सरकार के कुछ अति-दक्षिणपंथी सदस्य देश को युद्ध में उलझाए रख रहे हैं।
सेना और नेतन्याहू के बीच मतभेद
इस्राइली मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, प्रधानमंत्री नेतन्याहू और सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल एयाल जमीर के बीच गाजा को पूरी तरह कब्जे में लेने को लेकर मतभेद है। नेतन्याहू चाहते हैं कि सेना पूरे गाजा पर नियंत्रण करे, लेकिन जमीर इसके खिलाफ हैं क्योंकि इससे बंधकों की जान को खतरा हो सकता है और मानवीय संकट और गहरा सकता है। इसके साथ ही इस्राइल की अंतरराष्ट्रीय छवि और खराब हो सकती है रिपोर्ट्स में कहा गया है कि अगर नेतन्याहू ने यह फैसला थोप दिया, तो जमीर इस्तीफा भी दे सकते हैं।
गाजा में भूख और मौत का तांडव
गाजा में हालात दिन-ब-दिन बदतर हो रहे हैं। मंगलवार को कम से कम 45 फलस्तीनी नागरिकों की मौत हो गई। इनमें से कई लोग खाने की तलाश में थे। मोराग कॉरिडोर नाम के क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र की सहायता ट्रकों पर भीड़ जमा हुई और इस्राइली सेना ने गोली चला दी, जिसमें 26 लोगों की मौत हो गई। तेइना इलाके में भी 6 लोग मारे गए। गाजा के अस्पतालों में लाशों का ढेर लगा हुआ है। नासिर अस्पताल के बाहर मातम छाया हुआ था।
सहायता वितरण में भी बाधा
इस्राइल की नाकेबंदी और सैन्य हमलों के कारण सहायता सामग्री गाजा के लोगों तक नहीं पहुंच पा रही है। सीओजीएटी (इस्राइल का रक्षा निकाय) ने कहा है कि अब सीमित संख्या में स्थानीय व्यापारियों को सामान लाने की अनुमति दी जाएगी। लेकिन सहायता एजेंसियों का कहना है कि ये उपाय बहुत कम और देर से हैं।गाजा के निवासी अब हर दिन मौत और भूख के बीच जी रहे हैं। एक शख्स सामी अराफात, जो सात बच्चों के पिता हैं, उन्होंने बताया, ‘हमारे पास छिपने के लिए इमारतें नहीं हैं, हर जगह मलबा है।’ मोहम्मद कस्सास ने कहा, ‘अगर हम लड़ते हैं तो खाना मिलता है, नहीं लड़ें तो कुछ नहीं। अब सिर्फ ताकत से खाना लेना पड़ता है।’