नई दिल्ली। संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि उनका संगठन अपने स्वयंसेवकों और उससे जुड़े संगठनों को सीधे या दूर से नियंत्रित नहीं करता है। संघ किसी दबाव समूह के गठन में नहीं, बल्कि सभी को एकजुट करने में विश्वास रखता है।
भागवत ने कहा कि स्वयंसेवकों और संघ के बीच का बंधन अटूट और चिरस्थायी है। इसीलिए स्वयंसेवक हमसे मिलते हैं, बातचीत करते हैं। वे पूछते हैं, हम बताते हैं। अगर हमारे मन में कुछ आता है, तो हम बताते हैं। वे मदद मांगते हैं, हम मदद करते हैं। हम हर जगह अच्छे काम का समर्थन करते हैं, न सिर्फ स्वयंसेवकों का, बल्कि किसी के भी। ऐसे कई उदाहरण हैं। लेकिन उन पर संघ का पालन करने या उसकी बात सुनने का कोई दबाव नहीं है। उन्होंने कहा कि संघ यही अपेक्षा करता है कि ऐसे संगठन ठीक से काम करें और स्वयंसेवक अच्छा प्रदर्शन करें।
25 से अधिक देशों के राजदूत भी मौजूद थे
कार्यक्रम में संघ सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, अनुप्रिया पटेल, योग गुरु रामदेव, जद(यू) नेता के सी त्यागी और कंगना रनौत भी मौजूद थे। इनके अलावा चीन, डेनमार्क, अमेरिका, रूस और इज़राइल सहित 25 से अधिक दूतावासों के प्रतिनिधि और आरएसएस के संयुक्त महासचिव अरुण कुमार और कृष्ण गोपाल भी मौजूद थे।
हेडगेवार ने स्वतंत्रता आंदोलन की सभी धाराओं में निभाई सक्रिय भूमिका
संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने स्वतंत्रता आंदोलन में संगठन की कोई भूमिका न होने वाले कांग्रेस के आरोपों पर पलटवार किया। भागवत ने बताया कि संघ संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार ने स्वतंत्रता आंदोलन की चारों धाराओं में सक्रिय भूमिका निभाई। छात्रावस्था में स्कूल से निष्कासन भी देखा और आंदोलन के वक्त दो बार जेल भी गए। हेडगेवार जन्मजात देशभक्त थे। संघ की शुरुआत के बारे में बताते हुए भागवत ने आजादी के आंदोलन का जिक्र किया। उन्होंने कहा, उस वक्त चार अलग-अलग धाराएं थीं। क्रांतिकारी धारा, राजनीतिक धारा जिनका मानना था कि लोगों को जागरूक करना है। समाज सुधार की धारा और धर्म जागरूकता यानी मूल पर वापस आने की बात कहने वाली धारा। संघ प्रमुख ने कहा, हेडगेवार ने इन चारों धाराओं में काम किया और फिर संघ की स्थापना की।
1905 में स्कूलों में चलाया वंदेमातरम अभियान
भागवत ने कहा, हेडगेवार ने पहली बार नागपुर के स्कूलों में 1905 में वंदेमातरम अभियान चलाया। जिसके कारण उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया। दूसरे स्कूल में उन्हें कोलकाता में सशस्त्र क्रांति से जुड़े स्वतंत्रता सेनानियों के बीच समन्वय करने और आंदोलन की आग को पश्चिम भारत में फैलाने की जिम्मेदारी मिली। उन्होंने राजगुरू को नागपुर और इसके बाद अकोला में भूमिगत रखा। इसके बाद कांग्रेस के साथ काम करते समय उन्हें 1920 में अपने एक भाषण के लिए एक साल सश्रम कारावास की सजा भुगतनी पड़ी। संघ की स्थापना के बाद 1930 में उन्होंने संघ प्रमुख का पद छोड़कर जंगल सत्याग्रह में भाग लिया। इस मामले में भी उन्हें एक साल सश्रम कारावास की सजा मिली। संघ प्रमुख ने कहा कि संघ की स्थापना के बाद भी हेडगेवार गांधीजी, चंद्रशेखर आजाद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के लगातार संपर्क में रहे।