सुशील देव
शिक्षा के केंद्रों के लिए ऐसी अभद्र उपमा देना उचित नहीं, मगर क्या किया जाए! अब हद हो गई है! बहरों को सुनाने के लिए शोर मचाना ही होगा। इसीलिए इसे सेंटर्स को मौत के कोचिंग सेंटर कहने में कोई गुरेज नहीं होनी चाहिए। जी हां, कुकुरमुत्ते की तरह देश भर में कोचिंग सेंटर के अवैध धंधे चल रहे हैं। मुनाफाखोरी का बड़ा व्यवसाय बन चुका है। इतना ही नहीं, इस धंधे में बड़े—बड़े योजनाकार और रसूखदार लगे हुए हैं। ये गरीब एवं असहाय छात्रों से भी, जिनकी आंखों में अफसर बनने के ख्वाब पलते हैं, उन्हें समझा—बुझाकर मोटी रकम ऐंठ रहे हैं। पैसे कमाने की होड़ में ऐसे कोचिंग सेंटरों में विद्यार्थियों की सुविधा का ध्यान बेहद कम रहता है। पढ़ाने से भी ज्यादा फोकस कमाई पर रहता है, इसलिए इन सेंटरों का हाल बदहाल रहता है। दिल्ली के ओल्ड राजेंद्र नगर में एक नामी आईएएस बनाने वाले कोचिंग सेंटर में अचानक बरसात का पानी घुस जाने से जो समस्या आई, वह पूरे देश के कोचिंग सेंटरों में पढ़ाने या पढ़ने वालों के लिए एक संदेश जरूर है।
देश भर में चल रहे शिक्षा के ऐसे सेंटर देश के कानून एवं प्रावधानों की धज्जियां उड़ा रहे हैंं। छात्रों को सुनहरे भविष्य का दिवस स्वप्न दिखा रहे हैं। कोचिंग सेंटर में हुए हादसे में तीन छात्रों की दुखद मौत ऐसे सेंटरों पर बड़े सवाल करते हैं। आईएएस—आईपीएस बनाने का दावा करने वाले यह सेंटर भविष्य की प्रतिभाओं से खिलवाड़ कर रहे हैं। बस, इनका धंधा चलना चाहिए। खूब पैसे कैसे कमाए जाए, हमेशा यही चिंता रहती है। एक नामी—गिरामी कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में अचानक पानी भरने से जो तीन बच्चों की मौत हुई है, वह बेहद नींदनीय है और अमानवीय है। ऐसे लापरवाह सेंटरों पर सख्त से सख्त कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।
प्रथम दृष्टया तो इसके गुनहगार कोचिंग सेंटर के मालिक या व्यवस्थापक हैं। दूसरे सबसे बड़े गुनहगार दिल्ली नगर निगम, दिल्ली फायर एवं पर्यावरण सुरक्षा के साथ प्रशासनिक महकमा है, जो किसी प्रलोभन या दबाव के चलते ऐसे कोचिंग सेंटर खोलने की इजाजत दे देते हैं। रिश्वतखोरी के बल पर एनओसी ली जाती है। इसका नतीजा आपके सामने है। कभी बेसमेंट में अचानक पानी भर जाता है, कभी बिजली के घने तारों के जाल में आग लग जाती है तो कभी छोटे और संकरें रास्तों की वजह से कोई अप्रिय घटना घट जाती है। पानी भरने का कारण पाइप फटने और ड्रेनेज सिस्टम का गड़बड़ होना बताया जा रहा है। ऐसे में छात्रों की मौत को महज हादसा नहीं माना जा सकता। वास्तव में एक तरह से यह निर्मम हत्या है और यह पूरा सिस्टम हत्यारे के रूप में काम कर रहा है। जिन लोगों पर निगम या कानून लागू करवाने का दायित्व होता है, वही आंखें बंद कर बेखबर रहते हैं। भ्रष्ट तंत्र अपनी जेबों में पैसे डालकर होनहार बच्चों की जिंदगियों से खिलवाड़ करते रहते हैं।
मुखर्जी नगर कोचिंग सेंटर में पिछले साल जून के महीने में हुए अग्निकांड के खौफनाक दृश्य तो अब तक लोगों के दिल में होगा ही, कैसे जान बचाने के लिए छात्रों ने छतों से कूदकर अपनी जान बचाई थी। कैसे कोई कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में छात्रों के लिए लाइब्रेरी मौत की सुरंग साबित होता है। गुजरात में एक कोचिंग सेंटर में बीते दिनों आगजनी की घटना में 20 छात्रों की मौत हो गई थी। 25 मई को दिल्ली के विवेक विहार में स्थित बच्चों की एक अस्पताल में आग से सात बच्चों की मौत हो गई थी। 28 जून को दिल्ली के अति सुरक्षित आईजीआई एयरपोर्ट पर भी एक बहुत बड़ा हादसा हुआ। टर्मिनल 1 की छत का हिस्सा गिर गया। इसके चपेट में जाकर कार दब गई और एक कैब ड्राइवर की मौत हो गई। 15 जून 2023 को दिल्ली के मुखर्जी नगर में कोचिंग सेंटर में आग लगने से 61 लोग घायल हो गए थे। बीते 23 जुलाई को प्रशासन की लापरवाही के कारण पटेल नगर इलाके में आईएएस की तैयारी करने वाले एक छात्र की करंट लगने से मौत हो गई थी। देशभर में ऐसी कई घटनाएं हैं जो शिक्षण संस्थानों के अलग भी भीड़ वाली जगह पर कोई खास सुरक्षा व्यवस्था नहीं रखते रखी जाती जिस वजह से ऐसी दुर्घटनाएं घट रही है।
देश में देश के कई शहरों में नियमों को तात्पर रखकर कोचिंग संस्थानों का संचालन किया जा रहा है। उनके पास समुचित भवन नहीं होते। छात्रों के लिए सुविधाएं नहीं होती। पैसे कमाने के लिए जरूरत से ज्यादा छात्रों की संख्या, उनकी सुरक्षा व सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नहीं ऐसे में उन्हें भेड़—बकरियों की तरह बिठाया जाता है। पेयजल एवं शौचालय की व्यवस्था भी दुरुस्त नहीं होते। कई जगहों पर ऐसा देखा गया है कि संस्थानों के नाम के बोर्ड तक गायब होते हैं। कोचिंग का मक्का कहे जाने वाले कोटा शहर में कोचिंग संस्थानों की क्या हालत है, किसी से छुपी नहीं है। लेकिन सरकार या प्रशासन जिनकी बदौलत उन्हें ऐसे सेंटरों को खोलने की इजाजत मिलती है। उन्हें भी इसकी परवाह नहीं होती है। पठन-पाठन के लिए जो मुकम्मल व्यवस्था होनी चाहिए, उसका एक भी मानक सही तरीके से पालन नहीं किया जाता है। कई कमरों में गर्मियों के अंदर भी पंखे तक नहीं होते। कई खामियां हैं, जिन्हें गिनाना मुश्किल है। आखिर, किस प्रकार से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेकर ऐसे सेंटर खुल जाते हैं। कैसे बेसमेंट या किसी खतरनाक स्थिति वाली जगहों में यह धंधा आबाद है। इसकी पड़ताल जरूरी है। ऐसे में अनहोनी हो रही हैं, अनजाने में छात्र मौत के शिकार हो रहे हैं। मानसिक तनाव और दबाव के चलते छात्र आत्महत्या कर रहे हैं।
सरकारी महकमे में जवाबदेही तय नहीं होने की वजह छात्रों की मौत पर उनके परिजनों को आंसू बहाने के सिवा और कोई चारा नहीं है। आखिर, इसके जिम्मेदारों से कैसे निपटा जाएगा। उन्हें कैसे सजा दिलाई जा सकेगी। यह बड़ा सवाल है। सरकार के साथ जनता को भी इस मामले जागरूकता दिखानी होगी। सिर्फ दोषारोपण की राजनीति से काम नहीं चलेगा। यहां जिंदगी के मोल को गंभीरता से समझना होगा। ऐसे गंभीर घटना के गुनहगारों को कड़ी से कड़ी सजा दिलानी होगी। तभी इस प्रकार के हादसों में कमी आएगी। अगर सोचा जाए तो यह हादसा नहीं, वाकई हत्या है। यह मानव जनित त्रासदी है। इसकी वजह घोर लापरवाही और लचर व्यवस्था है। बेलगाम भ्रष्टाचार के कारण बेसमेंट में स्टोर या पार्किंग की जगह कोई ऐसे काम कर पाता है। मोटी रिश्वत खाकर वहां लाइब्रेरी बन जाती है। एमसीडी या संबंधित महकमें ने यह कहकर एनओसी दी होगी कि इसे वाहन पार्किंग या स्टोर के लिए अनुमति दी जा रही है। लेकिन वहां छात्रों के पठन—पाठन की व्यवस्था शुरू हो गई। देखने वाला कोई नहीं था, आदेश कुछ और काम कुछ। दिल्ली की घटना इस बात का परिचायक है कि जिन पर भी शहरी ढांचे की देखरेख या उसे संवारने की जिम्मेदारी है। वह भी अपनी आंखें मूंद बैठा है। अपना काम बिल्कुल भी सही तरीके से नहीं करते।
सघन आबादी के अंदर जहां पर रखने की जगह नहीं होती। वहां शिक्षण के ऐसे संस्थान खोलने का क्या मतलब? भीड़—भाड़ वाली जगह, जहां हल्की सी बरसात में भी चलना भी दूभर हो जाए, वहां इसकी इजाजत देना कहां तक उचित है? कुकुरमुत्ते की तरह पनप रहे ऐसी दुकानों को सरकार को तुरंत बंद करवानी चाहिए। मुंबई, बेंगलुरु, कोलकाता, दिल्ली, चेन्नई आदि कोई भी शहर हों, जहां प्रदेश सरकारों को भी इस मामले में दखल देना चाहिए। राजेंद्रनगर की घटना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। बच्चे देश के भविष्य होते हैं, जिनका असमय चला जाना दुखद है। कोचिंग सेंटरों की गलतियों की वजह से उनकी मौत होना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। इसका पाप उन सभी कर्ताधर्ता को जरूर लगेगा जो इसके लिए जिम्मेदार है। उन्हें अपने गिरेबान में झांकना चाहिए कि यदि उनके बच्चे भी इन कोचिंग सेंटर में पढ़ने के लिए जाते और उनके साथ यही हादसा होता है तो उन पर क्या गुजरती? दुर्भाग्यपूर्ण यह भी है कि साफ—सफाई के काम में पारदर्शिता नहीं है। बारिश से पहले नालियों की मरम्मत या सफाई नहीं होती। शहर के ड्रेनेज सिस्टम बेहद पुरानी है, जिसकी कोई भी राजनीतिक दल जिम्मेदारी नहीं लेता। उसे ठीक नहीं करवाता। कोई समीक्षा नहीं होती और इस बावत जनता की शिकायतों को गंभीरता से नहीं लिया जाता। वाकई, अब पानी सिर से ऊपर आ गया है, हद हो गई है!