Rajya Sabha Cash Scandal: आज राज्यसभा में शीतकालीन सत्र का 10वां दिन है और आज भी जमकर बवाल हुआ। लेकिन आज का मामला कुछ ऐसा है, जिसने सियासत की दुनिया में तहलका मचा दिया। दरअसल, कल गुरुवार को सदन की कार्यवाही स्थगित होने के बाद नोटों की गड्डी बरामद की गई है। ये नोटों की गड्डी सीट नंबर 222 से बरामद की गई है। जो तेलंगाना से कांग्रेस सांसद अभिषेक मनु सिंघवी को अलॉट की गई है।
लेकिन इस पूरे मामले से अभिषेक मनु सिंघवी ने अपने आप को दरकिनारे कर लिया है। उनका कहना है कि मैं संसद में 500 रुपए से ज्यादा लेकर जाता ही नहीं हूं। हालांकि, यह पहली बार नहीं है, जब संसद में नोटों की गड्डी मिली है। इससे पहले भी दो मौकों पर नोटों की वजह से भारत की संसद सुर्खियों में रह चुकी है।
कब मिली नोटों की गड्डी?
भारत की संसद में नोटों की गड्डी का पहला मामला 1993 का है। जब नरसिम्हा राव की सरकार केंद्र की सत्ता में थी। लेकिन सरकार के पास पूर्ण बहुमत नहीं था। बाबरी विध्वंस के बाद नरिसम्हा राव पार्टी नेताओं के निशाने पर भी थे। इस बीच भाजपा ने राव सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे दिया। पार्टी का कहना था कि सरकार अब अल्पमत में आ गई है। इस अविश्वास प्रस्ताव पर 3 दिन तक खूब बहस हुई।
पैसे बंटने ने बच गई राव की सरकार
उस समय नरसिम्हा राव के पास 244 सांसदों का ही साथ था। लेकिन वोट उन्हें 265 मिले। वहीं, अविश्वास प्रस्ताव के समय विपक्ष को सिर्फ 251 वोट मिल पाए। ऐसे में राव की सरकार गिरने से बच गई। वहीं, दूसरी तरफ 1996 में झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसद सूरज मंडल ने एक बड़ा खुलासा किया। सूरज मंडल का दावा था कि 1993 में पैसे बंटने की वजह से राव की सरकार बच पाई। उनका कहना था कि सरकार बचाने के लिए एक-एक सांसदों को 40 लाख रुपए दिए गए थे।
CBI का हलफनामा
ऐसा कहा जा रहा था कैश कांड की यह पूरी स्क्रिप्ट बूटा सिंह ने लिखी थी। जो राव की सरकार में कद्दावर मंत्री थे। जिसके बाद 1993 में जेएमएम के साथ-साथ चौधरी अजित सिंह की पार्टी भी टूटी थी। इस मामले में CBIकी तरफ से दाखिल हलफनामे में कहा गया था कि पैसा कैश में मिला था। जेएमएम के सांसदों ने इस पैसे को स्थानीय स्तर पर ब्याज पर लगा दिया। हालांकि, बाद में यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया। लेकिन केस में सभी आरोपी बरी हो गए। जिसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने साल 2000 में पूरे मामले को लेकर सीबीआई को जमकर फटकार लगाई।
दूसरी बार कब मिली नोटों की गड्डी?
साल 2008 में अमेरिका के साथ मनमोहन सिंह की सरकार ने न्यूक्लियर डील किया। इस समझौते के खिलाफ सीपीएम ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया। जिसके तुरंत बाद बीजेपी ने अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे दिया। जिसके बाद इस प्रस्ताव पर संसद में खूब बहस हुई। लेकिन जब बारी वोटिंग की आई तो बीजेपी के 3 सांसदों ने नोट लहरा दिए। यह नोट तत्कालीन लोकसभा के स्पीकर सोमनाथ चटर्जी के टेबल पर लहराए गए। नोट लहराने वाले बीजेपी के सांसदों में अशोक अर्गल, फगन कुलस्ते और महावीर भागौरा का नाम शामिल था।
तीनों सांसदों का कहना था कि उन्हें पैसे सपा के अमर सिंह ने दिए हैं। यह पैसा सरकार के पक्ष में क्रॉस वोटिंग के लिए दिया गया है। इस आरोप को तब और बल मिला। जब समाजवादी पार्टी ने मनमोहन सरकार का समर्थन कर दिया। इस अविश्वास प्रस्ताव में सरकार के पक्ष में 268 वोट पड़े। विपक्ष को 263 वोट मिले। मतदान के दौरान बीजेपी के 8 सांसदों ने पार्टी का ही खेल बिगाड़ दिया। इस मामले में मनमोहन सरकार के खिलाफ मोर्चेबंदी कर दी। इस मामले में अमर सिंह को जेल भी जाना पड़ा, लेकिन उन पर कोई सख्त कार्रवाई नहीं हुई।