One Nation One Election: केंद्र सरकार ने हाल ही में संविधान (129वां) संशोधन बिल 2024को लोकसभा में पेश किया है, जिसे ‘एक देश-एक चुनाव विधेयक’ के नाम से भी जाना जा रहा है। सरकार का कहना है कि 1952से 1967तक देश में लोकसभा और राज्यों की विधानसभा के चुनाव एक साथ होते थे, तो अब ऐसा क्यों नहीं हो सकता। हालांकि, इस पर यह सवाल उठता है कि 1967के बाद एक साथ चुनावों का सिलसिला क्यों बंद हो गया।
1967का अहम मोड़
भारत में 1951-52में पहले आम चुनाव हुए, जिसमें लोकसभा और राज्यों की विधानसभा के चुनाव एक साथ हुए थे। यह सिलसिला 1967तक जारी रहा। हालांकि, इस बीच 1959में केरल में इंदिरा गांधी के फैसले के कारण विधानसभा चुनाव अलग से हुए थे। 1967में जब देशभर में चुनाव हुए, तब भी यह सिलसिला जारी था, लेकिन इसके बाद इंदिरा गांधी के फैसलों ने इसे बदल दिया।
1967के बाद, इंदिरा गांधी ने उत्तर प्रदेश, पंजाब और पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू किया। इसके बाद, लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों के बीच अंतर आने लगा। 1971में लोकसभा चुनाव की तारीख को एक साल पहले कर दिया गया, जिससे चुनावों की तिथियों में और बदलाव आ गया।
चुनाव आयोग और विधि आयोग की सिफारिशें
चुनाव आयोग और विधि आयोग ने 1983, 1999और 2015में ‘एक देश-एक चुनाव’ का सुझाव दिया था, लेकिन इसे लागू नहीं किया जा सका। 2017और 2018में नीति आयोग और विधि आयोग ने फिर से इस पर जोर दिया। जस्टिस बीएस चौहान की अध्यक्षता में एक समिति ने इसके कानूनी और संवैधानिक पहलुओं पर भी विचार किया।
2019में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘एक देश-एक चुनाव’ की बात की थी, और इसके बाद एक समिति गठित की गई। 17दिसंबर 2024को केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने इस विधेयक को लोकसभा में पेश किया।