आज गणतंत्र दिवस परेड को लाखों लोग राजधानी में कर्तव्यपथ से गुजरता हुआ देखेंगे। इसी तरह से करोड़ों भारतीय परेड को अपने टीवी सेटों पर देखेंगे। पर इस बार टीवी पर परेड को देखने वालों को परेड का आंखों देखा हाल ब्रिगेडियर चितरंजन सावंत से सुनने को नहीं मिलेगा। उन्होंने 1980 से लेकर 2023 तक गणतंत्र दिवस परेड का आंखों देखा हाल सुनाया था।
ब्रिगेडियर चितरंजन सावंत जब रेडियों या टीवी पर गणतंत्र दिवस परेड का आंखों देखा सुनाते हुए भारतीय सेना के तीन अंगों और अर्धसैनिक बलों की शौर्य़ गाथाओं को दर्शकों तक पहुंचाते थे, तो रोंगटे खड़े हो जाते थे। ब्रिगेडियर सावंत का पिछले साल निधन हो गया था।
ब्रिगेडियर सावंत अपनी आवाज से दृश्यों को रचने में माहिर थे। वे जब सारे वातावरण को सुनने वालों के सामने पेश करते थे तब सुनने वालों को लगता था कि वह भी गणतंत्र दिवस को राजपथ या लाल किले से देख रहे हैं। उनकी कमेंट्री कभी नीरस या बोझिल नहीं होती थी। माफ कीजिए, ब्रिगेडियर सावंत उन कमेंटेटरों में से नहीं थे जो यही ही बताते हैं कि राजपथ पर अब सेना के किस रेजीमेंट की टुकड़ी आ रही है या इसकी कमान किसके पास है। वे इससे कहीं आगे जाया करते थे। उन्हें सुनने के बाद श्रोता उनसे हमेशा के लिए जुड़ते थे।
प्रख्यात समाचार वाचक देवकीनंदन पांडे कहते थे कि श्रेष्ठ कमेंटेटर की भाषा ऐसी होनी चाहिए जो दर्शकों को आसानी से समझ में आए। उन्हें जटिल शब्दों और वाक्यों से बचना चाहिए। उन्हें शब्दों का सही उच्चारण करना चाहिए ताकि सुनने वालों को समझने में कोई दिक्कत न हो। इस लिहाज से ब्रिगेडियर सावंत बेजोड़ थे। वे एक ही तरह की भाषा का प्रयोग करने से बचते थे। वे आंखों देखा हाल सुनाते हुए अपनी भाषा में विविधता लाते थे और मुहावरों का प्रयोग करते थे।
जब गणतंत्र दिवस परेड में सेना की टुकड़ियां कर्तव्यपथ ( पहले राजपथ) पर आनी शुरू होती थीं तब कमेंट्री की कमान ब्रिगेडियर सावंत के पास हुआ करती थीं। उसके बाद वे अपनी धीर-गंभीर आवाज में सेना की टुकड़ियों की उपलब्धियों, इतिहास, नायकों वगैरह पर बोला करते थे। सेना और देश की समरनीति पर उनकी जानकारी का कोई सानी नहीं था। याद नहीं आता कि ब्रिगेडियर सावंत ने कमेंट्री सुनाते नुक्ते के प्रयोग से लेकर शब्दों के उच्चारण में कभी कोई चूक की हो।
ब्रिगेडियर सावंत हमेशा पूरे उत्साह के साथ कमेंटरी करते थे। वे किसी भी बेहतर कमेंटेटर की अपने बोलने की गति पर नियंत्रण रखते थे। उन्हें पता था कि कमेंटेटर को परेड को एक कहानी की तरह प्रस्तुत करना चाहिए, जिससे दर्शकों को खेल में रुचि बनी रहे। उनकी कमेंटरी सुनकर उनका दर्शकों के साथ एक मजबूत रिश्ता बन जाता था।
वे भारत के स्वाधीनता आँदोलन के गहरे जानकार भी थे। उन्होंने कई बार स्वाधीनता समारोह की भी कमेंट्री की। वे चीनी भाषा के भी विद्वान थे। भारतीय सेना ने उन्हें 1962 में चीन से युद्ध के बाद चीनी भाषा को सीखने के लिए अमेरिका भेजा था। उनकी आवाज का उतार-चढ़ाव सर्वोत्तम हुआ करता था।
ब्रिगेडियर सावंत ने ख्वाबों में भी कभी नहीं सोचा था कि वे एक दिन-रेडियों कमेंट्री करेंगे। दरअसल सन 1934 में अयोध्या में जन्में ब्रिगेडियर सावंत इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से इंग्लिश लिटलेचर में एम.ए करने के बाद शिक्षक बन गए थे। दो साल तक पढ़ाया भी। पर उनका लक्ष्य तो सेना में नौकरी करने का था। सेना के अनुशासन और सैनिक की ड्रेस उन्हें बहुत प्रभावित करती थी। उन्हें शिक्षक रहते हुए इंडियन मिलिट्री एकाडमी (आईएमए) की परीक्षा को पास करने के बाद भारतीय सेना को ज्वाइन कर लिया। यह 1959 की बात है। इस तरह उनका जीवन का जीवन का एक बड़ा सपना साकार हो गया। तीन साल के बाद वे 1962 में चीन के खिलाफ बहादुरी से लड़ रहे थे। उसके बाद वे 1965 और 1971 के युद्ध में भी रणभूमि में दुश्मन के दांत खट्टे कर रहे थे।
ब्रिगेडियर सावंत सेना में रहते हुए अपनी यूनिट के कार्यक्रमों का इंग्लिश और हिंदी में संचालन तो करते थे। उनके द्वारा किए जाने वाले कार्यक्रमों के संचालन को पसंद भी किया जाता था। उनका दोनों भाषाओं पर नियंत्रण दर्शकों को प्रभावित भी करता था। पर उन्होंने कभी कमेंटेटर के रूप में ख्याति पाने के बारे में सोचा नहीं था। हालांकि 1971 में आकाशवाणी ने भारतीय सेना पर एक कार्यक्रम शुरू किया।
उसका नाम था ‘ फौजी भाइयों का कार्यक्रम’। उस कार्यक्रम को पेश करने के लिए सेना ने उनका नाम आकाशवाणी में भेजा। वहां पर रहते हुए वे मंजे हुए ब्राडकास्टर बन गए। उन्होंने फील्ड मार्शल सैम मानकशॉह का भी इंटरव्यू किया। उसके बाद दूरदर्शन शुरू हुआ तो उन्हें वहां भी सेना के कार्यक्रमों को संचान के लिए बुलाया जाने लगा।
ब्रिगेडियर सावंत ने 1980 से 1997 तक लगातार दूरदर्शन के लिए गणतंत्र दिवस परेड का आंखों देखा हाल सुनाया। उसके बाद वे कई प्राइवेट खबरिया चैनलों के लिए गणतंत्र दिवस की कमेंट्री सुनाते रहे।
ब्रिगेडियर सावंत ने भारत छोड़ो आंदोलन और सेना से जुड़ी दर्जनों फिल्मों के लिए भी कमेंट्री की। दूरदर्शन से लंबे समय तक जुड़े रहे मशहूर फिल्मकार राजशेखर व्यास बता रहे थे कि ब्रिगेडियर सावंत के साथ उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन पर फिल्म बनाई। वे सिर्फ कमेंट्री ही नहीं करते थे। वे अपनी कमेंट्री में विषय से जुड़े बहुत सारे अनछुए पक्षों से भी श्रोताओं को रू ब रू करवाया करते थे। बेशक, हरेक गणतंत्र दिवस पर ब्रिगेडियर चितरंजन सावंत की समृद्ध करने वाली कमेंट्री याद आती रहेगी।
विवेक शुक्ला