तमिलनाडु। तमिलनाडु बनाम राज्यपाल मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सवाल उठाए हैं। इसे लेकर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने नाराजगी जताई है। अब सीएम स्टालिन ने गैर भाजपा शासित राज्यों के सीएम को पत्र लिखा है।
सीएम स्टालिन ने पत्र में लिखा है कि राष्ट्रपति ने केंद्र सरकार की सलाह पर संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट के सलाहकार अधिकार का उपयोग करते हुए 13 मई 2025 को 14 प्रश्न उठाए हैं। इसमे किसी राज्य या फैसले का जिक्र नहीं है, लेकिन यह साफ है कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा तमिलनाडु राज्य बनाम राज्यपाल के मामले में की टिप्पणियों पर सवाल उठाए हैं।
उन्होंने लिखा कि तमिलनाडु के संबंध में आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला केवल मेरे ही नहीं बल्कि सभी राज्यों के लिए अहम है। सभी जानते हैं कि कैसे केंद्र सरकार ने राज्यपालों का उपयोग विपक्ष शासित राज्यों के कार्यों को बाधित करने के लिए किया है। राज्यपाल विधेयकों को मंजूरी देने में देरी करते हैं या उन्हें बिना वैध व कानूनी कारणों के रोके रखते हैं। वे नियमित कार्यों में हस्तक्षेप करते हैं, महत्त्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियों में बाधा डालते हैं और विश्वविद्यालयों के कुलपति के रूप में अपने पद का दुरुपयोग करते हैं।
स्टालिन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल मामले में अपने फैसले में कहा कि राज्यपाल विधेयकों से संबंधित मामलों में राज्य मंत्रिमंडल की सलाह से बंधे हैं। वे विधेयकों को अनिश्चितकाल तक रोक नहीं सकते। राष्ट्रपति और राज्यपाल के कार्यों के लिए समय-सीमा निर्धारित की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने लोकतांत्रिक और संघीय ढांचे की रक्षा करते हुए एक सही निर्णय दिया है।
एमके स्टालिन ने आरोप लगाया कि भाजपा इस निर्णय को अस्थिर करने का प्रयास कर रही है, ताकि अन्य राज्य इसे उदाहरण के रूप में न अपनाएं। इसलिए भाजपा ने राष्ट्रपति से सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में दखल देने की रणनीति तैयार की है। जबकि सुप्रीम कोर्ट की सलाहकार अधिकारिता का प्रयोग तब नहीं किया जा सकता जब उस विषय पर पहले ही न्यायालय द्वारा स्पष्ट निर्णय दिया जा चुका हो।
उन्होंने कहा कि मैंने पहले भी सभी गैर भाजपा शासी राज्य सरकारों और क्षेत्रीय दलों के नेताओं से एकजुट होकर इस कानूनी लड़ाई को लड़ने की अपील की थी। अब मैं व्यक्तिगत अनुरोध करता हूं कि सभी इसका विरोध करें और सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक संयुक्त और समन्वित रणनीति के तहत संविधान की मूल संरचना की रक्षा करें।
सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल मामले में 8 अप्रैल को फैसला सुनाया था। कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल विधानसभा से पारित बिलों को अनिश्चितकाल तक रोक नहीं सकते। यदि राज्यपाल किसी बिल को राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेजते हैं, तो राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर निर्णय लेना होगा। जस्टिस जेबी पारदीवाला व जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने कहा था कि व्यक्तिगत असंतोष, राजनीतिक स्वार्थ या अन्य किसी असंगत या अप्रासंगिक विचार जैसे आधारों पर विधेयक को सुरक्षित रखना संविधान के तहत पूरी तरह अनुचित है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कई महत्वपूर्ण सवाल उठाए थे। राष्ट्रपति ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 200 (राज्यपाल की शक्तियों) और अनुच्छेद 201 (राष्ट्रपति की शक्तियों) में बिलों को मंजूरी देने या रोकने के लिए कोई समयसीमा या प्रक्रिया निर्धारित नहीं है। राष्ट्रपति ने यह भी उल्लेख किया कि सुप्रीम कोर्ट के कुछ पुराने फैसलों में राष्ट्रपति की मंजूरी की न्यायिक समीक्षा पर विरोधाभासी राय दी गई है, जिसके लिए स्पष्टता की आवश्यकता है।