भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने अंतरिक्ष में एक ऐसा खास प्रयोग किया है। ये न केवल लंबे अंतरिक्ष मिशन पर जाने वाले यात्रियों के लिए फायदेमंद होगा, बल्कि धरती पर बुजुर्गों और मांसपेशियों से जुड़ी बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए भी राहत ला सकता है। शुभांशु शुक्ला पिछले हफ्ते इतिहास रचते हुए इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पर पहुंचने वाले पहले भारतीय बने। वह अमेरिका की एक्सिओम स्पेस मिशन-4 का हिस्सा हैं।
शुक्ला ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बातचीत में बताया कि जैसे ही कोई व्यक्ति अंतरिक्ष में जाता है, वहां गुरुत्वाकर्षण न होने के कारण शरीर पर भार नहीं पड़ता। इसी वजह से मांसपेशियों में कमजोरी और गिरावट शुरू हो जाती है। उनका प्रयोग यह पता लगाने के लिए है कि क्या कुछ सप्लीमेंट्स देकर इस मांसपेशी नुकसान को रोका या टाला जा सकता है।
धरती के बुजुर्गों को भी मिल सकता है फायदा?
शुक्ला ने कहा कि इस शोध का फायदा केवल अंतरिक्ष में नहीं, बल्कि धरती पर भी बुजुर्गों और मांसपेशियों से जुड़ी बीमारियों वाले लोगों को मिल सकता है। बुजुर्गों में उम्र बढ़ने के साथ मांसपेशियां कमजोर होती हैं। अगर यह प्रयोग सफल रहता है, तो ऐसे लोगों के लिए दवाओं या सप्लीमेंट्स के रूप में बड़ा इलाज सामने आ सकता है।
एक्सिओम स्पेस ने अपने मिशन स्टेटमेंट में कहा कि यह खोज लंबी अवधि के स्पेस मिशन पर जाने वाले अंतरिक्ष यात्रियों की मांसपेशियों को कमजोर होने से बचा सकती है। भविष्य में चंद्रमा या मंगल जैसे मिशनों के लिए यह तकनीक बेहद जरूरी मानी जा रही है। नासा ने बताया कि शुभांशु शुक्ला ने स्पेस में रहते हुए भारत के छात्रों के लिए एक खास वीडियो भी रिकॉर्ड किया है। इसमें उन्होंने बताया कि अंतरिक्ष में पाचन तंत्र यानी डाइजेस्टिव सिस्टम कैसे काम करता है। साथ ही, उन्होंने ‘एस्ट्रोनॉट मेंटल हेल्थ’ से जुड़े अध्ययन के लिए भी वीडियो शूट किए।भारत ने भेजे सात अहम वैज्ञानिक अध्ययन
एक्सिओम मिशन के दौरान 14 दिनों तक सभी अंतरिक्ष यात्री लगभग 60 वैज्ञानिक प्रयोग और व्यावसायिक गतिविधियां करेंगे। इन प्रयोगों में अमेरिका, भारत, पोलैंड, हंगरी, सऊदी अरब, ब्राजील, नाइजीरिया, यूएई और यूरोप के कई देशों की भागीदारी है। भारत ने इस मिशन के लिए सात खास वैज्ञानिक अध्ययन भेजे हैं, जिनमें से मांसपेशियों पर हो रहा यह प्रयोग सबसे अहम माना जा रहा है।