ओवैसी ने कहा कि संविधान में स्पष्ट प्रावधान है कि भारत के राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करेंगे। लेकिन प्रस्तावित बिल कहता है कि राष्ट्रपति प्रधानमंत्री को हटा सकते हैं। उन्होंने सवाल किया कि यह कैसे संभव होगा? क्या राष्ट्रपति किसी प्रधानमंत्री से इस्तीफा ले सकते हैं? ओवैसी ने इसे संविधान के मूल अनुच्छेद से टकराने वाला कदम बताया। उन्होंने कहा कि इस पर गंभीर चर्चा की जरूरत है क्योंकि यह मौलिक व्यवस्था को चुनौती देता है।
जांच एजेंसियों पर गंभीर सवाल
ओवैसी ने कहा कि सीबीआई और ईडी जैसी एजेंसियों का इस्तेमाल राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के लिए किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि जब भाजपा नैतिकता की बात करती है तो उसे यह भी कानून बनाना चाहिए कि जो नेता भ्रष्टाचार के आरोप में पकड़े जाएं, उन्हें केंद्र की पार्टी में शामिल न किया जाए। उन्होंने कहा कि असल नैतिकता यही होगी कि कानून सब पर समान रूप से लागू हो। उन्होंने कहा कि जांच एजेंसियों को सरकार से स्वतंत्र करना जरूरी है ताकि जनता का भरोसा बना रहे।
बिहार एसआईआर को लेकर बयान
ओवैसी ने बिहार में चल रहे एसआईआर पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि पूरा अभ्यास चुनाव आयोग द्वारा किया जा रहा है, जबकि चुनाव आयोग को नागरिकता की जांच करने का अधिकार ही नहीं है। यह जिम्मेदारी गृह मंत्रालय की है। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग को उसकी संवैधानिक सीमाओं के भीतर ही रहकर काम करना चाहिए। अन्यथा यह लोकतांत्रिक संस्थाओं की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करेगा।
जेपीसी में शामिल करने की मांग
ओवैसी ने कहा कि उनकी पार्टी स्पीकर से अनुरोध करेगी कि उन्हें संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) में शामिल किया जाए। उन्होंने कहा कि अगर नैतिकता की बात होती है तो फिर इन एजेंसियों को स्वतंत्र क्यों नहीं किया जाता। उन्होंने दोहराया कि संवैधानिक नैतिकता तभी स्थापित होगी जब सत्ता और जांच एजेंसियों के बीच दूरी बनाई जाए। ओवैसी ने साफ किया कि वह इस मुद्दे पर संसद में लड़ाई जारी रखेंगे और सरकार की दोहरी नीतियों को उजागर करेंगे।