नागपुर। माधव सदाशिवराव गोलवलकर ने एक कठिन दौर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का नेतृत्व किया था और उसे आकार दिया था। वह आरएसएस प्रमुख (सरसंघचालक) बनने के लिए एक अप्रत्याशित विकल्प थे। आरएसएस के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार ने जून 1940 में अपने निधन से पहले गोलवलकर को उत्तराधिकारी चुना। वरिष्ठ पत्रकारी सुधीर पाठक ने यह बात कही।
आरएसएस प्रमुख बनने के बाद गोलवलकर का ध्यान शाखाओं का विस्तार करने और स्वयंसेवकों के व्यक्तित्व निर्माण पर रहा। इसी बात को हेडगेवार ने भी महत्वपूर्ण माना था। 1942 में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान जब यह सवाल उठा कि आरएसएस को इस आंदोलन में भाग लेना चाहिए या नहीं, तो गोलवलकर ने निर्णय लिया कि संगठन के तौर पर संघ इसमें भाग नहीं लेगा, लेकिन स्वयंसेवक व्यक्तिगत रूप से शामिल हो सकते हैं। कुछ स्वयंसेवकों ने आंदोलन में भाग भी लिया।
‘तीन आरएसएस कार्यकर्ताओं को सुनाई गई फांसी की सजा’
पाठक ने बताया कि बालासाहेब देशपांडे जैसे स्वयंसेवकों ने नागपुर जिले के रामटेक तहसील कार्यालय से यूनियन जैक (ब्रिटिश झंडा) हटा दिया था। चिमूर-अष्टी आंदोलन में भी आरएसएस कार्यकर्ता शामिल हुए, जहां सात लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई थी, जिनमें से तीन स्वयंसेवक थे। बाद में उन्हें प्रिवी परिषद से राहत मिली। 1947 में विभाजन के समय गोलवलकर ने इसका विरोध किया, लेकिन संघ उस समय इसे प्रभावी तरीके से रोकने की स्थिति में नहीं था।
उन्होंने आगे कहा, 1948 में गांधीजी की हत्या के बाद आरएसएस को सबसे बड़ा संकट झेलना पड़ा। सरकार ने संघ पर प्रतिबंध लगा दिया और गोलवलकर को मध्य प्रदेश की बैतूल और सिवनी जेलों में बंद कर दिया गया। पाठक ने बताया कि गोलवलकर ने गांधीजी की मृत्यु पर शोक व्यक्त करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल और गांधीजी के परिवार को टेलीग्राम भेजे थे। पांच फरवरी 1948 को आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया गया। जेल से ही गोलवलकर ने सरकार से पत्राचार किया और प्रतिबंध को गैरकानूनी बताया। नवंबर 1948 में संघ कार्यकर्ताओं ने सत्याग्रह शुरू किया, जिसमें वे शाखा लगाने के लिए एकत्र होने लगे। तीन महीने बाद सरकार ने एक लिखित संविधान की मांग की।
‘गोलवलकर ने ही तैयार किया आरएसएस का संविधान’
पाठक ने कहा, ‘गोलवलकर ने जेल में ही आरएसएस का संविधान तैयार कर सरकार को सौंपा। इसके बाद प्रतिबंध हटा लिया गया और उन्हें रिहा कर दिया गया। गोलवलकर की सरदार पटेल से मुलाकात के बाद सरकार का रवैया संघ के प्रति थोड़ा नरम हुआ। 1948 से 1950 का समय आरएसएस के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि उस वक्त जनता की राय संघ के खिलाफ थी, लेकिन गोलवलकर ने इस संकट को संभाला और संगठन को नई दिशा दी।’