पश्चिम बंगाल। पश्चिम बंगाल में कमल खिलाने का वर्षों का सपना पूरा करने के लिए भाजपा इस बार नई रणनीति के साथ चुनाव मैदान में उतरेगी। चुनाव से पहले थोक के भाव सत्तारूढ़ टीएमसी नेताओं के पालाबदल से ज्यादा जोर टीएमसी के कार्यकर्ताओं का पालाबदल कराने पर होगा। चुनाव में पार्टी स्थानीय रणनीति के साथ स्थानीय नेताओं पर ज्यादा भरोसा जताएगी। इसके अलावा पार्टी जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के जरिये टीएमसी के भाजपा के बाहरी होने का दांव का जवाब देगी। गौरतलब है कि मुखर्जी पश्चिम बंगाल के ही थे।
राज्य की रणनीति से जुड़े केंद्रीय नेता के मुताबिक, टीएमसी नेताओं में सीएम ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी के उत्थान को लेकर नाराजगी है। ऐसे नेता जो ममता के करीबी हैं, उनमें भी बनर्जी को लेकर नाराजगी है। चुनाव नजदीक आते-आते टीएमसी के कई नेता पाला बदल सकते हैं। हालांकि, भाजपा का ध्यान इस बार थोक में टीएमसी नेताओं को पार्टी में शामिल कराने के बदले टीएमसी कार्यकर्ताओं को साधने पर है। पार्टी नेताओं के बदले जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं को भाजपा में शामिल कराने पर ध्यान देगी।
समानांतर ध्रुवीकरण पर भरोसा
पार्टी के रणनीतिकार के मुताबिक, टीएमसी से पार पाने के लिए भाजपा को राज्य में 45% वोटों की जरूरत है। पार्टी को 2019 के लोकसभा चुनाव में सर्वाधिक 40.25% वोट मिले थे। हालांकि, 2021 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को करीब 38% और बीते लोकसभा चुनाव में करीब 39% वोट मिले थे। पार्टी को उम्मीद है कि महिलाओं के खिलाफ राज्य में हुई कई गंभीर घटनाओं और कई हिस्से में जनसांख्यिकी बदलाव से उपजी नाराजगी के कारण इस बार उसके वोट बैंक में उछाल आएगा। उसे मुस्लिम मतों के धुव्रीकरण के जवाब में बहुसंख्यकों के समानांतर ध्रुवीकरण का लाभ मिलेगा।
पार्टी के रणनीतिकार के मुताबिक, टीएमसी से पार पाने के लिए भाजपा को राज्य में 45% वोटों की जरूरत है। पार्टी को 2019 के लोकसभा चुनाव में सर्वाधिक 40.25% वोट मिले थे। हालांकि, 2021 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को करीब 38% और बीते लोकसभा चुनाव में करीब 39% वोट मिले थे। पार्टी को उम्मीद है कि महिलाओं के खिलाफ राज्य में हुई कई गंभीर घटनाओं और कई हिस्से में जनसांख्यिकी बदलाव से उपजी नाराजगी के कारण इस बार उसके वोट बैंक में उछाल आएगा। उसे मुस्लिम मतों के धुव्रीकरण के जवाब में बहुसंख्यकों के समानांतर ध्रुवीकरण का लाभ मिलेगा।

