Economic Survey 2024-25: केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 31 जनवरी को लोकसभा में आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 पेश किया। इस सर्वेक्षण में आगामी वित्त वर्ष के लिए देश की आर्थिक वृद्धि, सरकारी राजस्व, पूंजीगत व्यय और महंगाई से जुड़े प्रमुख आंकड़े प्रस्तुत किए गए हैं।
आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, वित्त वर्ष 2026 में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 6.3% से 6.8% के बीच रह सकती है। इसके अलावा, वस्तु एवं सेवा कर (GST) संग्रह में 11% की वृद्धि का अनुमान है, जिससे कुल संग्रह 10.62 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है। यह अनुमान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के 6.5% के अनुमान के करीब है, जबकि विश्व बैंक के 6.7% अनुमान से थोड़ा कम है।
विकसित भारत के लिए 8% जीडीपी वृद्धि आवश्यक
सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए हर साल 8% की जीडीपी वृद्धि आवश्यक होगी। हालांकि, सेवा क्षेत्र लगातार विस्तार कर रहा है, लेकिन विनिर्माण क्षेत्र में हल्की गिरावट के संकेत मिले हैं।
सर्वेक्षण के मुताबिक, वित्त वर्ष 2025 में निजी अंतिम उपभोग व्यय (PFCE) में 7.3% की वृद्धि हो सकती है। इसका मुख्य कारण ग्रामीण क्षेत्रों में मजबूत मांग को बताया गया है। जीडीपी में PFCE का योगदान वित्त वर्ष 2024 के 60.3% से बढ़कर 61.8% हो सकता है।
निर्यात और सरकारी पूंजीगत व्यय में बढ़ोतरी
वित्त वर्ष 2025 की पहली छमाही में सेवा क्षेत्र में 7.1% की वृद्धि देखी गई। इसी दौरान केंद्र सरकार के पूंजीगत व्यय में 8.2% की वृद्धि हुई। निर्यात में 5.6% वृद्धि दर्ज की गई, जबकि आयात में 0.7% की मामूली वृद्धि हुई।
रक्षा, रेलवे और परिवहन क्षेत्रों में निवेश बढ़ा
नवंबर 2024 तक, रक्षा, रेलवे और सड़क परिवहन के लिए किए गए पूंजीगत व्यय का 75% उपयोग हो चुका था। बिजली, खाद्य और सार्वजनिक वितरण जैसे क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण निवेश देखा गया।
महंगाई दर घटी, विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत
आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) मुद्रास्फीति अप्रैल-दिसंबर 2024 में घटकर 4.9% रह गई। वहीं, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार सितंबर 2024 में 704.9 बिलियन डॉलर तक पहुंचा, लेकिन जनवरी 2025 तक यह घटकर 634.6 बिलियन डॉलर रह गया।
बैंकिंग क्षेत्र में सुधार
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की रिपोर्ट के अनुसार, सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (Gross NPA) घटकर 2.6% रह गई हैं, जो 12 वर्षों में सबसे निचले स्तर पर है। यह बैंकिंग क्षेत्र की मजबूती को दर्शाता है।