(विवेक शुक्ला , वरिष्ठ पत्रकार)
अगर भारत में उपराष्ट्रपति का पद विवादों से आमतौर पर परे रहा, तो यह कहना भी सही नहीं होगा कि इस पद पर आसीन शख्सियतें विवादों से हमेशा दूर ही रहीं। जगदीप धनखड़ के मंगलवार को उप राष्ट्रपति पद से अचानक से इस्तीफा देने से देश की राजनीति में भूचाल सा आ गया है। उनके इस्तीफे को लेकर तमाम तरह अटकलबाजी चल रही है। हालांकि उन्होंने इस्तीफे का कारण अपना खराब स्वास्थ्य बताया है। पर इस कारण पर कोई भरोसा नहीं कर रहा। धनखड़ से पहले भी देश के कुछ उपराष्ट्रपति विवादों में रहे हैं। देश में उपराष्ट्रपति को लेकर पहला विवाद बड़ा विवाद वी.वी. गिरि से जुड़ा है। यह बात है 1969 की। यह भारतीय राजनीति का एक बड़ा विवाद था जिसमें देश के उप-राष्ट्रपति सीधे तौर पर शामिल थे। दरअसल 1969 में राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन के निधन के बाद, तत्कालीन उप-राष्ट्रपति वी.वी. गिरि कार्यवाहक राष्ट्रपति बने। कांग्रेस पार्टी के भीतर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पुराने नेताओं के “सिंडिकेट” के बीच सत्ता संघर्ष चरम पर था। कांग्रेस के आधिकारिक उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी थे, जिन्हें सिंडिकेट का समर्थन प्राप्त था। इंदिरा गांधी ने वी.वी. गिरि को एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने कांग्रेस के सांसदों और विधायकों से “अंतरात्मा की आवाज” पर वोट देने का आह्वान किया। परिणाम यह हुआ कि गिरि एक बहुत ही करीबी मुकाबले में जीत गए। इस घटना ने कांग्रेस पार्टी को दो फाड़ कर दिया और इंदिरा गांधी को पार्टी के सर्वोच्च नेता के रूप में स्थापित किया। यह एक ऐसा मामला था जहाँ उप-राष्ट्रपति का पद सीधे तौर पर सत्ता संघर्ष का एक उपकरण बन गया। इसी क्रम में बी.डी. जत्ती और 1977 के संवैधानिक संकट की चर्चा करना भी जरूरी है। राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के निधन के 1977 में निधन के बाद, उप-राष्ट्रपति बी.डी. जत्ती कार्यवाहक राष्ट्रपति बने। देश में आपातकाल के बाद, केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी। सरकार ने नौ कांग्रेस शासित राज्यों की विधानसभाओं को भंग करने की सिफारिश की। कार्यवाहक राष्ट्रपति जत्ती ने इस अध्यादेश पर हस्ताक्षर करने में शुरू में हिचकिचाहट दिखाई। उनकी हिचकिचाहट के कारण कुछ दिनों तक संवैधानिक संकट पैदा हो गया था, क्योंकि यह सवाल उठा कि क्या कार्यवाहक राष्ट्रपति कैबिनेट की सलाह को मानने के लिए बाध्य हैं। हालांकि कुछ दिनों के बाद उन्होंने हस्ताक्षर कर दिए, लेकिन इस घटना ने कार्यवाहक राष्ट्रपति की शक्तियों पर एक बड़ी बहस छेड़ दी। आप कह सकते हैं कि दो बार उपराष्ट्रपति रहे हामिद अंसारी का कार्यकाल काफी हद तक गैर-विवादास्पद रहा, लेकिन उनके कार्यकाल के अंत में दिए गए बयानों ने एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया। अपने कार्यकाल के अंतिम दिन एक साक्षात्कार में, उन्होंने कहा कि देश के मुसलमानों में “असुरक्षा और बेचैनी की भावना” है। इस बयान की सत्ताधारी दल और उसके समर्थकों ने तीखी आलोचना की। उन पर एक संवैधानिक पद पर रहते हुए एक राजनीतिक और विभाजनकारी बयान देने का आरोप लगाया गया। इससे पहले भी, गणतंत्र दिवस परेड के दौरान राष्ट्रगान के समय ध्वज को सलामी न देने पर उनकी आलोचना हुई थी। बाद में यह स्पष्ट किया गया कि प्रोटोकॉल के अनुसार, केवल राष्ट्रपति ही सलामी देते हैं और अन्य सभी गणमान्य व्यक्ति केवल सावधान की मुद्रा में खड़े होते हैं। हालांकि, स्पष्टीकरण के बावजूद यह मुद्दा सोशल मीडिया पर एक विवाद बना रहा। जब तक हामिद अँसारी उपराष्ट्रपति आवास में रहे तब तक वहां पर अनेक लेखकों की किताबों के विमोचन होते रहे। उन्हें लेखकों और विद्वानों से मिलना पसंद था। उन्होंने खुद भी कई किताबें लिखी थीं। वेंकैया नायडू ने 2018 में, राज्य सभा के सभापति के रूप में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ विपक्ष द्वारा लाए गए महाभियोग प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। तब विपक्ष ने आरोप लगाया था कि नायडू ने यह निर्णय जल्दबाजी में और सरकार के दबाव में लिया। उनका तर्क था कि प्रस्ताव में पर्याप्त संख्या में सांसदों के हस्ताक्षर थे और इसे स्वीकार कर जांच समिति को भेजा जाना चाहिए था। पर नायडू ने अपने फैसले को यह कहते हुए सही ठहराया कि प्रस्ताव में लगाए गए आरोप “अस्पष्ट” थे और “सिद्ध कदाचार” की श्रेणी में नहीं आते थे। इस फैसले ने न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के बीच संबंधों पर एक तीव्र बहस को जन्म दिया और सभापति की विवेकाधीन शक्तियों को चर्चा के केंद्र में ला दिया। वेंकैया नायडू उपराष्ट्रपति भी आवास में लेखकों, नौजवानों, कलाकारों वगैरह से मिला करते थे। वे बेहद ओजस्वी वक्ता हैं। बहुत खुलकर अपनी बात रखते हैं। उनकी छवि एक ‘आंदोलनकारी’ की रही। वे 1972 में ‘जय आंध्र आंदोलन’ के दौरान पहली बार सुर्खियों में आए थे। उन्होंने इस दौरान नेल्लोर के आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेते हुये विजयवाड़ा से आंदोलन का नेतृत्व किया। छात्र जीवन में उन्होंने लोकनायक जयप्रकाश नारायण की विचारधारा से प्रभावित होकर आपातकालीन संघर्ष में हिस्सा लिया। वे आपातकाल के विरोध में सड़कों पर उतर आए और उन्हें जेल भी जाना पड़ा। वे बेहतरीन मेजबान भी थे। सबसे खूब प्रेम से मिलते-जुलते थे। उपराष्ट्रपति के रूप में भी उनका कार्यकाल शानदार रहा था। वे अपनी बात कहने से कभी पीछे नहीं हटते। नायडू जी कभी-कभी किसी सेमिनार में भाग लेते हुए श्रोताओं को कस भी देते हैं जिनकी जुबान चलती रहती थी। अगर इन कुछ उदाहरणों को छोड़ दें तो उप राष्ट्रपति के रूप में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन,डॉ. जाकिर हुसैन,गोपाल स्वरूप पाठक, आर.वेंकटरमण, शंकर दयाल शर्मा, डॉ. के.आर.नारायणन, कृष्ण कांत, भैरोसिंह शेखावत के कार्यकाल शांति से निकले। अगर देश के पहले उपराष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन की बात करें तो उनकी पहली पर ही राजधानी को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (आईआईसी) मिला था। डॉ राधाकृष्णन ने 1958 देश के तब के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से इच्छा जताई थी कि राजधानी में कोई इस तरह की जगह बन जाए जिधर पढ़ने-लिखने की दुनिया से जुड़े लोग मिल-बैठ करते रहें। उनकी सलाह नेहरू जी को पसंद आ गई। उन्होंने बिना देर किए शहरी विकास मंत्रालय को निर्देश दिए कि वह एक प्लाट अलाट करे। नेहरू जी के निर्देश के बाद देरी होने का सवाल ही नहीं था। तब लोधी गार्डन से सटे 4.76 एकड़ का प्लॉट आईआईसी के लिए अलॉट किया गया। इसका प्लाट मिलने के बाद डॉ राधाकृष्णन ने आईआईसी को खड़ा करने के लिए वित्त मंत्री डॉ सी.डी.देशमुख, प्रो. एच.एन. कुंजरू, प्रो. हुमायूं कबीर ( जॉर्ज फर्नांडिस के ससुर), दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के डायरेक्टर डॉ वीके आरवी राव वगैरह को जोड़ा। ।कृष्णकांत का उपराष्ट्रपति पद पर रहते हुए 27 जुलाई, 2002 को निधन हो गया था।भैंरो सिंह शेखावत के दौर में उपराष्ट्रपति आवास के गेट आम-खास सब के लिए खुले रहते थे। भैरोंसिंह शेखावत 19 अगस्त 2002 से 21 जुलाई 2007 तक देश के उपराष्ट्रपति रहे। शेखावत जी खुद यारबाश और किस्सागो इंसान थे। उनके पास मिलने वालों की भीड़ कभी कम नहीं होती थी। गर्मागर्म चाय पिलाकर वे अतिथियों से विस्तार से वार्तालाप करते थे। गंभीर राजनीति हो या तनाव के लम्हे, शेखावत हास्य के क्षण खोज लेते थे। बहरहाल, जगदीप धनखड़ के अप्रत्याशित इस्तीफे का असर अभी कुछ दिनों तक और चलने वाला है।