महाराष्ट्र। महाराष्ट्र में महायुति गठबंधन, भाजपा, एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी, पहली बार स्थानीय चुनावों की बड़ी परीक्षा से गुजरने जा रहा है। 2 दिसंबर को पहले चरण में 246 नगर परिषदों और 42 नगर पंचायतों के लिए मतदान होगा। 1 करोड़ से ज्यादा मतदाता वोट डालेंगे। लेकिन मतदान से पहले ही गठबंधन के अंदर सबकुछ शांत नहीं दिख रहा।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि जिन 57 स्थानीय निकायों में 50% से ज्यादा आरक्षण दिया गया है, उनके नतीजे अंतिम फैसले के बाद ही मान्य होंगे। कोर्ट पहले भी चेतावनी दे चुका है कि आरक्षण सीमा टूटने पर चुनाव रद्द भी हो सकते हैं। राज्य चुनाव आयोग ने स्वीकार किया है कि सीमा टूट चुकी है। यानी राजनीति के साथ एक कानूनी असमंजस भी चुनाव पर मंडरा रहा है।
भाजपा और शिवसेना (शिंदे गुट) के बीच नेताओं की पोचिंग यानी एक-दूसरे के स्थानीय नेताओं को अपनी ओर खींचने की शिकायतों से तनाव बढ़ गया है। पिछले हफ्ते शिवसेना के मंत्री कैबिनेट बैठक से गैरहाजिर रहे। बाद में शिंदे और फडणवीस के बीच बातचीत हुई और एक ‘नो पोचिंग एग्रीमेंट’ बना। लेकिन नाराजगी पूरी तरह खत्म नहीं हुई।
सियासी बयानबाजी और कैश विवाद से नया तूफान
हाल ही में जनसभाओं में दोनों पक्षों की टिप्पणी सुर्खियों में रही। एकनाथ शिंदे ने कहा, ‘अहंकार से रावण का पतन हुआ।’ वहीं सीएम देवेंद्र फडणवीस ने जवाब दिया, ‘हम राम के अनुयायी हैं, लंका में नहीं रहते।’ राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, यह बयानबाजी गठबंधन की अंदरूनी खींचतान को उजागर करती है। वहीं शिवसेना विधायक निलेश राणे ने दावा किया कि सिंधुदुर्ग में एक भाजपा कार्यकर्ता के घर से वोट खरीदने के लिए नकदी मिली। भाजपा ने जांच की मांग की है लेकिन राणे के तरीके पर सवाल उठाए हैं।
हिंगोली में भाजपा विधायक तानाजी मुतकुले और शिवसेना विधायक संतोष बांगड़ के बीच खुला टकराव राजनीतिक माहौल और गरमा रहा है। महाविकास आघाड़ी (कांग्रेस, शिवसेना-यूबीटी और एनसीपी-एसपी) इस स्थिति को अपना फायदा मान रही है। उनकी उम्मीद है कि ‘गठबंधन की अंदरूनी लड़ाई वोट काटेगी और मुकाबला बहुकोणीय होगा, जिससे एमवीए को फायदा मिल सकता है।’ हालांकि एमवीए में भी एक मुद्दा उलझा हुआ है, राज ठाकरे की मनसे को साथ लिया जाए या नहीं।

