– भिंड व अटेर विधानसभा में 50 प्रतिशत से भी था कम।
– मतदान बढ़ाने के लिए चुनौती भिंड मुरैना और ग्वालियर में अधिक है।
– दोनों दलों के प्रमुख नेताओें की साख भी दांव पर लगी है।
भोपाल। मध्य प्रदेश में दो चरणों के मतदान में 2019 की तुलना में सात से नौ प्रतिशत तक कमी आने के बाद चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों की नजर अब तीसरे चरण के मतदान प्रतिशत को लेकर है। कारण, इस चरण में सर्वाधिक नौ सीटे हैं। यह सीटें ग्वालियर-चंबल और मध्य भारत की हैं। इन नौ सीटों पर पिछले लोकसभा चुनाव में 66.63 प्रतिशत औसत मतदान हुआ था।
इस बार इससे कम रहा तो राजनीतिक दलों का हार-जीत को लेकर गणित बदल सकता है। वहीं, निर्वाचन आयोग को यह चिंता सता रही है कि यहां गिरावट आने पर प्रदेश में पिछली बार के औसत 71.13 से काफी नीचे गिर जाएगा। चौथे चरण में अच्छा मतदान होता है तो भी अंतर को पाटना मुश्किल होगा।
चुनौती भिंड मुरैना और ग्वालियर में अधिक है। पिछले चुनाव में भिंड लोकसभा सीट के अटेर और भिंड विधानसभा सीट में 50 प्रतिशत से भी कम मतदान हुआ था। वहीं ग्वालियर में पांच, भिंड में छह और मुरैना में पांच विधानसभा सीटों में 60 प्रतिशत से कम निर्वाचकों ने मतदान किया था। जिन सीटों पर भाजपा और कांग्रेस में कड़ी टक्कर है वहां एक-एक मत दोनों दलों के लिए कीमती हैं।
इस कारण वह कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते। मतदान के साथ अपने-अपने क्षेत्र से दोनों दलों के प्रमुख नेताओें की साख भी दांव पर लगी है। मतदान कम हुआ तो उनकी सक्रियता पर प्रश्न उठ सकते हैँ। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी पार्टी के प्रदेश पदाधिकारियों को मतदान बढ़ाने के लिए कह चुके हैँ।