Supreme Court On Refugees: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने शरणार्थियों के मुद्दे पर एक अहम और सख्त टिप्पणी की है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है, जहां दुनिया भर के शरणार्थी बिना किसी रोक-टोक के आकर बस जाएं। कोर्ट ने कहा कि भारत पहले से ही अपनी 140 करोड़ की आबादी के भरण-पोषण में जूझ रहा है। इसलिए हर जगह से आने वाले शरणार्थियों को शरण देना संभव नहीं है।
शरणार्थियों के मुद्दे पर SC का बयान
बता दें, कोर्ट का यह बयान उस समय आया, जब कोर्ट श्रीलंका से आए एक तमिल शरणार्थी की हिरासत के मामले में सुनवाई कर रहा था। जस्टिस दीपांकर दत्ता की अगुवाई वाली बेंच ने इस मामले में साफ तौर पर कहा कि भारत में संसाधनों की सीमा और आबादी का दबाव इसे दुनिया भर के शरणार्थियों के लिए खुला मैदान नहीं बनने देगा। कोर्ट की यह टिप्पणी न केवल तमिल शरणार्थी के मामले में थी, बल्कि यह भारत की व्यापक शरणार्थी नीति पर भी एक स्पष्ट संदेश देती है।
क्या है भारत की शरणार्थी नीति?
मालूम हो कि भारत ने ऐतिहासिक रूप से पड़ोसी देशों से आए शरणार्थियों को शरण दी है। हालांकि, भारत ने 1951 के शरणार्थी सम्मेलन या इसके 1967 के प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। जिसके कारण वह अंतरराष्ट्रीय शरणार्थी कानूनों के तहत बाध्य नहीं है। भारत अपनी शरणार्थी नीति को राष्ट्रीय सुरक्षा और आंतरिक स्थिरता के आधार पर तय करता है।
वर्तमान समय में भारत में लाखों शरणार्थी और अवैध प्रवासी रह रहे हैं। जिनमें रोहिंग्या, श्रीलंकाई तमिल, और अफगान शरणार्थी शामिल हैं। इनमें से कई लोगों के पास वैध दस्तावेज नहीं हैं। जिसके कारण उनकी स्थिति अनिश्चित बनी हुई है। ऐसे में सरकार कई बार कह चुकी है कि अवैध प्रवासियों को देश में रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती। क्योंकि यह राष्ट्रीय सुरक्षा और संसाधनों पर दबाव डालता है।
रोहिंग्या शरणार्थी के मामले में SC का फैसला
इसके अलावा हाल ही में, कोर्ट ने रोहिंग्या शरणार्थियों के मामले में भी सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने कहा कि अगर रोहिंग्या शरणार्थियों के पास भारत में रहने के लिए वैध दस्तावेज नहीं हैं, तो उन्हें देश से बाहर जाना ही होगा। बता दें, कोर्ट का यह फैसला उस याचिका के जवाब में आया, जिसमें वकील प्रशांत भूषण ने रोहिंग्याओं को देश से निकालने के सरकार के फैसले का विरोध किया था।