नई दिल्ली. अपने मैदानों पर लगातार दो सीरीज हार के बाद जो होना चाहिए था वो शुरु हो चुका है. वो है टेस्ट में भारतीय टीम के गिरते ग्राफ का पोस्टमॉर्टम . वैसे इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत को टेस्ट क्रिकेट के लिए एक रोडमैप और कुछ साहसिक फैसलों की ज़रूरत है. टेस्ट विशेषज्ञों को उतना ही वेतन या उससे भी अधिक देना होगा जितना आईपीएल सितारों को मिलता है, और शायद यहीं से लाल-गेंद क्रिकेट को प्राथमिकता देने की शुरुआत हो सकती है. पोस्ट-मैच प्रेस कॉन्फ्रेंस में गौतम गंभीर ने कहा कि हमें टेस्ट क्रिकेट को प्राथमिकता देनी चाहिए हाँ,बिल्कुल देनी चाहिए पर लेकिन मेरा सवाल है कैसे? उस दौर में टेस्ट क्रिकेट को कैसे प्राथमिकता दी जाए जहाँ सफेद-गेंद क्रिकेट व्यावसायिक रूप से अपार सफलता हासिल कर चुका है?
साफ बात करें तो, चेतेश्वर पुजारा जिन्होंने टेस्ट क्रिकेट में अद्भुत योगदान दिया कभी एक ठीकठाक आईपीएल कॉन्ट्रैक्ट भी नहीं पा सके. कोई भी सफेद-गेंद खिलाड़ी, जो बड़े छक्के मार सकता है, वह आईपीएल के एक सीज़न में उतना कमा लेता है जितना पुजारा ने पूरे साल में नहीं कमाया. एंडोर्समेंट भी अंजिक्य रहाणे या पुजारा को उतने नहीं मिले तो ऐसे में कोई क्यों व्यावहारिक रूप से देखें तो लाल-गेंद क्रिकेट खेले? या टेस्ट क्रिकेट को प्राथमिकता देना चाहे
विराट कोहली, पुजारा, रहाणे, रोहित शर्मा और आंशिक रूप से केएल राहुल वह अंतिम पीढ़ी थे जो लाल-गेंद खेल को प्राथमिकता देने का जोखिम उठाने की स्थिति में थे. पर अब यशस्वी जायसवाल, ध्रुव जुरेल या नितीश रेड्डी क्यों ऐसा करें? टेस्ट क्रिकेट उन्हें सफेद-गेंद cricket के एक हिस्से जितना भी पैसा नहीं देगा, और टेस्ट पर ज़ोर देने से उनके सफेद-गेंद करियर तक को नुकसान हो सकता है.
सच्चाई यह है कि हम अपनी ही बनाई हुई परिस्थितियों के क़ैदी बन चुके हैं. हम सफेद-गेंद क्रिकेट में मजबूत बने रहेंगे क्योंकि पैसे की मात्रा ऐसी है कि हर प्रतिभाशाली खिलाड़ी सफेद-गेंद क्रिकेट में ही आगे बढ़ना चाहता है. 90 ओवर की फील्डिंग या दिनभर 20 ओवर गेंदबाज़ी के बदले खिलाड़ियों को कुछ खास नहीं मिलता. हाँ, थोड़ी-बहुत सराहना कि कोई टेस्ट क्रिकेट की मशाल थामे हुए है मिल जाती है, पर यह सब हाशिये पर ही रहता है. व्यावहारिक रूप से देखें तो हम धीरे-धीरे लाल-गेंद राष्ट्र के रूप में सिकुड़ रहे हैं.
टेस्ट गेंदबाजों का आकाल
गेंदबाज़ भी कुछ अलग नहीं हैं, स्पिनरों के लिए अब मुख्य उद्देश्य है किफ़ायती गेंदबाज़ी करना. साइमन हार्मर पारंपरिक ऑफ-स्पिन कराते हैं गति बदलते हैं, उड़ान देते हैं, विविधता रखते हैं लेकिन वॉशिंगटन सुंदर containment की सोच के साथ बड़े हुए हैं यह उनकी गलती नहीं आज के दौर ही ऐसा है जहां टेस्ट क्रिकेट को प्राथमिकता देने की बात करना, दरअसल, खिलाड़ियों से धारा के विरुद्ध तैरने को कहना है.
मनी से बन रहे है व्हाइट बॉल मास्टर
भारत सफेद-गेंद क्रिकेट में अच्छा क्यों है, क्योंकि हमारे पास विशेषज्ञ हैं. अभिषेक शर्मा, तिलक वर्मा, हार्दिक पांड्या ये सभी सफेद-गेंद के विशेषज्ञ हैं. हमने एक ऐसी टीम बनाई है जो अपने चुने हुए प्रारूप में ही निपुण है. अब हम सफेद-गेंद का ढाँचा लाल-गेंद क्रिकेट में उतारने की कोशिश कर रहे हैं. नितीश को ही लें मेलबर्न में शतक के अलावा कुछ खास नहीं. उनकी गेंदबाज़ी टेस्ट स्तर की नहीं है, और कल उन्होंने जो शॉट खेला, उससे साफ है कि बतौर बल्लेबाज़ भी वे अभी तैयार नहीं हैं फिर नितीश को लाल-गेंद क्रिकेटर कैसे माना जाए, या जुरेल को
हालाँकि शुभमन गिल की कमी बहुत खली और जानकारों का अब भी मानना है कि वे ईडन गार्डन्स में भारत को मैच जिता सकते थे पर सच्चाई यह है कि यह सीरीज़ पूरी तरह से विफल रही. हमें एक रोडमैप चाहिए और कुछ क्रांतिकारी फ़ैसले लेने होंगे. टेस्ट विशेषज्ञों को आईपीएल सितारों जितन या उससे भी ज़्यादा भुगतान करना और इसे लाल-गेंद क्रिकेट खेलने की प्रेरणा बनाना शायद पहला कदम हो सकता है. तभी हम सच-मुच इस प्रारूप को प्राथमिकता दे पाएँगे और लगातार घरेलू सफ़ाया झेलने की पीड़ा से खुद को बचा पाएँगे.

