Jaishankar Message To Europe: विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने रविवार को यूरोपीय देशों को दो-टूक कहा कि भारत ऐसे देशों की तलाश में है जो सच्चे साझेदार बन सकें, न कि ऐसे जो केवल उपदेश देने का काम करें। उन्होंने यह बात ‘आर्कटिक सर्कल इंडिया फोरम’ में एक संवाद सत्र के दौरान कही।
जयशंकर ने कहा कि अगर यूरोप भारत के साथ मजबूत रिश्ते चाहता है, तो उसे संवेदनशीलता और पारस्परिक हितों को समझने की जरूरत है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि भारत को ऐसे उपदेशकों की ज़रूरत नहीं है जो खुद अपनी कही बातों पर अमल नहीं करते।
नज़रिए में बदलाव की जरूरत: विचार नहीं, हितों पर ज़ोर दें
जयशंकर ने कहा कि भारत दुनिया से वैचारिक मेल की अपेक्षा नहीं करता, बल्कि आपसी हितों के आधार पर मजबूत संबंध चाहता है। उन्होंने अमेरिका का उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे वह रूस के यथार्थवाद को समझता है, वैसे ही अमेरिका के व्यवहारिक दृष्टिकोण का भी समर्थन करता है।
उनका कहना था कि वैश्विक साझेदारी के लिए वैचारिक मतभेदों से ऊपर उठकर काम करना होगा। यह तभी संभव है जब दोनों पक्ष एक-दूसरे की ज़रूरतों और सोच को समझें।
भारत-रूस संबंधों को लेकर दी स्पष्ट राय
रूस-यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर जयशंकर ने पश्चिमी देशों की आलोचना की। उन्होंने कहा कि रूस को बातचीत से अलग रखकर समाधान ढूंढना यथार्थवादी नहीं है।
उन्होंने कहा, “भारत और रूस संसाधनों के स्तर पर एक-दूसरे के पूरक हैं।” भारत ने संकट के बावजूद रूस से तेल खरीदना जारी रखा और इसे राष्ट्रीय हितों से जुड़ा फैसला बताया।
यूरोप को अपनाना होगा व्यावहारिक रवैया
जयशंकर ने कहा कि यूरोप का एक हिस्सा अभी भी पुरानी सोच में फंसा है, हालांकि कुछ देशों ने बदलाव की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। उन्होंने कहा, “अगर भारत और यूरोप को एक मजबूत साझेदारी बनानी है, तो उसमें आपसी समझ, संवेदनशीलता और साझा हित सबसे अहम भूमिका निभाएंगे।”
जयशंकर का यह बयान भारत की विदेश नीति में आत्मनिर्भर और स्पष्ट सोच को दर्शाता है, जहां समानता और सम्मान पर आधारित संबंध प्राथमिकता हैं।