नई दिल्ली। भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बी. आर. गवई ने बुधवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने मौलिक अधिकारों के दायरे को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है और इसका 75 साल का सफर भारतीय संविधान से जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने सूचना तकनीक, मध्यस्थता और चुनावी प्रक्रिया जैसे जटिल मामलों पर फैसले देकर समाज की बदलती जरूरतों को पूरा किया है।
उन्होंने कहा कि यह वर्ष ऐतिहासिक है, क्योंकि संविधान और सुप्रीम कोर्ट दोनों को 75 वर्ष पूरे हो रहे हैं। पिछले साढ़े सात दशकों में हमने संविधान और सुप्रीम कोर्ट के बीच अटूट संबंध देखा है। सीजेआई ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट संविधान के तहत स्थापित किया गया था और उसके तहत ही कार्य करता है, लेकिन कोर्ट ने भी संविधान की सबसे बड़ी ढाल के रूप में कार्य किया है। इस तरह सुप्रीम कोर्ट की 75 साल की यात्रा और संविधान की यात्रा एक-दूसरे से अलग नहीं की जा सकती। एक जीवन देता है और दूसरा यह सुनिश्चित करता है कि वह जीवन गरिमा, न्याय और स्वतंत्रता के साथ जारी रहे।
‘सुप्रीम कोर्ट को संविधान के तहत सौंपी गई थी जिम्मेदारी’
सीजेआई ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट को संविधान के तहत एक बहुत बड़ा दायित्व सौंपा गया था। इसी दिशा में सुप्रीम कोर्ट ने ‘केशवानंद भारती मामले’ में मूलभूत ढांचे (बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्चर) के सिद्धांत का विकास किया, ताकि संविधान की बुनियादी विशेषताओं की रक्षा की जा सके।उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) की व्यापक और प्रगतिशील व्याख्या करके निजता का अधिकार, गरिमा का अधिकार, न्याय का अधिकार, भोजन, आवास, स्वच्छ पानी और प्रदूषण मुक्त वातावरण का अधिकार जैसे कई अहम अधिकारों को मान्यता दी।
जस्टिस गवई ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कभी-कभी अपने ही पुराने फैसलों को गलत माना और उन्हें सुधारने का साहस किया और विनम्रता भी दिखाई है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने निजता को मौलिक अधिकार मानने वाले फैसले में एडीएम जबलपुर मामले को एक ऐतिहासिक भूल बताया। उन्होंने कहा, हालांकि एडीएमजबलपुर का कानूनी असर संविधान संशोधन से खत्म हो गया था, लेकिन कोर्ट द्वारा खुद की गलती स्वीकार करना न्यायिक जागरूकता की मिसाल है।
‘सुप्रीम कोर्ट के 75 साल केवल जजों की यात्रा नहीं’
उन्होंने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट की 75 साल की यात्रा केवल जजों की नहीं, बल्कि वकीलों की भी है, जिन्होंने अपनी दलीलों, विचारों और वकालत से सांविधानिक बहस को आकार दिया। उन्होंने कहा कि न्याय की कहानियां केवल कानून के दायरे में सीमित न रहें, बल्कि आम जनता तक पहुंचें। सीजेआई ने एससीबीए को उसके सदस्यों के लिए 50 करोड़ रुपये के ग्रुप मेडिकल हेल्थ इंश्योरेंस फंड जुटाने पर बधाई दी।